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जात-पांँत का गोरखधंधा


महाराज ने अपने श्रीमुख से इस प्रकार आज्ञा प्रदान की- देख री ईट, तू डॉक्टर से कह कि महाराज की स्त्री के पेट में दर्द है। तुम चलकर दवाई लिखदो ।

डाक्टर साहिब ने कहा, चलो मैं चलता हूँ। ब्राह्मण देवता- जी आगे होलिए और डाक्टर साहिब पीछे । परन्तु रास्ते में देवताजी पीछे फिर कर देखते जाते थे कि कहीं डाक्टर ४८ फिट से कम फासले पर तो नहीं गया है। ज्यों त्यो कर के मकान के पास पहुंचे, डाक्टर को दूर से ही इशारे से मैज कुरसी बतादी।

डाक्टर साहिब कुर्सी पर बैठ गये, चिट्ठी पढ़कर “नुसखा' लिख दिया और ५) रु० का नोट जेब में डालकर अपने घर को चल दिये।

इस घटना के दो तीन दिन पीछे वेङ्कटास्वामी नाम के एक वैसे ही नामधारी ब्राह्मण ने अदालत दीवानी में एक दावा दायर कर दिया-

“इस गांव का डाक्टर, जे थिया जाति का अछूत है। मन्नू स्वामी की स्त्री की दवाई लिखने गया था। रास्ते में मेरा तालाब आता है। वह डाक्टर उस तालाब की पाल पर होकर निकला जिससे मेरा तालाब अशुद्ध होगया है। उसकी शुद्धि