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जात-पाँत की एक रोमाञ्च-जनक कथा

‌पाठकों की दृष्टि से पं० लक्ष्मीकान्त मालवीय का ताजा पत्र निकला होगा जो इन दिनों प्रायः सभी समाचार पत्रों में घूम गया है। पत्र इतना रोमांचजनक है कि हम उसका उल्लेख किये विना नहीं रह सकते, आपने भारतभूषण पं. मदनमोहनजी मालवीय के नाम बड़े हृदयधक शब्दों में निम्नानुसार खुला पत्र प्रका- शित कराया है, अप लिखते हैं:-

मालवीय एक ब्राह्मण जाति है, जो कदाचित् सवासौ वर्ष हुए मालवा से आकर गंगा यमुना के तट पर बने स्थानों में बस गई है, इलाहाबाद इसका केन्द्र है। उस की संख्या बहुत थोड़ी है, इस जाति को यह गर्व प्राप्त है कि इसमें पं० मदनमोहनजी मालवीय जैसे भद्रपुरष ने जन्मलिया है जो हिन्दुसंगठन के जन्मदाता हैं, इस जाति में जन्म का अभिमान इतना है और इस के अनुयायी अपने रक्त की पवित्रता को इतना ध्यान रखते हैं कि वह जन्म में रक्त की दृष्टि से दूसरे ब्राह्मणों को अपने बराबर को नहीं समझते।

चूंकि मालवीय जाति की संख्या परिमित है, अतः विवाह शादियों के अवसर पर उन्हें वर कन्या को खोज करते समय अपना चुनाव बहुत ही कम लोगों में करना पड़ता है। काईबार तो ऐसा होता है कि उनके विवाह एक ही गोत्र और पिण्ड में हो जाते हैं। जिसे मनुस्मृति और दूसरे शास्त्रों में वर्जित किया