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जात-पांँत का गोरखधंधा


गया है ऐसे विवाहों की न केवल शास्त्र आदि ने ही आशा नहीं- दी, प्रत्युत Engenics की दृष्टि से ऐसे विवाह अत्यन्त ही हानिकारक हैं। परन्तु यह बड़े दुःख की बात है कि इस प्रकार के शास्त्रों के अनुयायी पं० मदनमोहन मालवीयजी और उनके साथ सहन कर लेते हैं।

सौभाग्य या दौर्भाग्य से मैं भी इसी जाति से संबन्ध रखता हूं और मुझे पं०मदनमोहन मालवीयजी का समीप का संबन्धी होने का गौरव प्राप्त है। उनके साथ मेरा सम्बन्ध यह है कि मेरी बड़ी पुत्री उनके सब से छोटे पुत्र पं० गोविन्दकान्तजी को घ्याही हुई है अब अपनी जाति में घरों की कमी के कारण मैं अपनी दूसरी कन्या के लिये कोई उपयुक्त वर न ढूंढ़ सका, अतः मैंने अपनी जाति से बाहर खोज की, सौभाग्य से मुझे अपनी अभिलाषा के अनुसार पं० रामचन्द्रजी बी.ए. मिल गए, आप देहरादून में बैरिस्टरी करते हैं, पं०जी के साथ मेरी पुत्री का विवाह हुए ४ बर्ष हो गए हैं परन्तु इस विवाह को मालवीय पण्डित, जो अपनी सज्जनता पर इतना गर्ब करते हैं, सहन न कर सके और उनकी क्रोध की अग्नि भड़क उठी ।

इस अपराध का दण्ड मुझे देने के अभिप्राय से मालवीय जाति के पण्डितों ने पं० मालवीयजी के सभापतित्व में पवित्र गंगा के तट पर एक सभा की और प्रस्ताव पास किये, उनमें यह