पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१७०

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अनेक इतने धनी हैं कि सारी आमिल बिरादरी को खरीद सकते हैं। कमला का पिता निर्धन है सही, परन्तु उसकी जाति हमसे नीची नहीं है।

रत्नचंद—-चुप । रह, चुप रह, असभ्य लड़के, बहुत मत बोला । मुझे नहीं मालूम था कि तु इतना असभ्य और मुंँहफट है। मेरे सामने ऐसी बकवाद करने का साहस करता है !

किशोर---पूज्य पिता जी, विश्वास कीजिये, किशोर असभ्य नहीं है। हां, यह मेरे जीवन-मरण का प्रश्न है। मुझे अपने विचार प्रकट करने की आज्ञा तो होनी ही चाहिये । मैं आप के पैरों पड़ता हूँ । आप जानते हैं कि वह गर्भवती है। यदि मैं उसके साथ विवाह न करूगा, तो उसका जीवन विनष्ट हो जायेगा । कहीं की न रहेगी । लोग उस पर शूकेगे । अन्त में लोगों के तानों से तंग आकर बेचारी कहीं भाग जायेगी। फिर या तो किसी विधर्म के फंदे में फंँस जायेगी, या फिर पापी पेट की ज्वाला बुझाने के लिये सतीत्व का सौदा करने लगेगी । आप कुछ तो विचार कीजिये। उसका भविष्य इस तरह बर्बाद न होने दीजिये। मुझे ओ चाहे दण्ड दीजिये, किन्तु उसका जीवन में बचाइये । पिता जी, दया! दया ! दया !

रत्न चन्द–महामूर्ख छोकरे ! उस बनिये की बेटी से विधाह करने की हठ करता है? जानता है, वह वेश्या न जाने किस किस के साथ मुंह काला कर चुकी है ? ।

किशोर–बस पिसाजी, मर्यादा का उल्लंघन मत कीजिये । अब और कुछ मुँह से मत निकातिये । वह मेरी पत्नी है। मैं उसके विरुद्ध ऐसे गंदे शब्द और न सुन सकूँगा ।

रत्नचंद--अच्छा ! तो निकल जा मेरे घर से | इन्हीं कपङो