पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१८०

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तबीयत ठीक नहीं है। रह गये हम दोनों । सो हम मां-बेटा बातों बातों में ही रात बिता दें तो अच्छा रहेगा। इसलिये तुम बेशक वह कहानी सुनायो।

किशोर--अच्छा, तो सुनिये ! न जाने हमारे पूर्वजों ने किस लिये समूची हिन्दू जाति को चार विभागों में बांट दिया था। ये विभाग हैं-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । ब्राह्मणों का काम ठहराया गया विधा का पढ़ना पढाना, यज्ञ का करना-कराना और दान का देना-लेना । क्षत्रियों को सौर दी गई राज-काज की देख-भाल, देश में सुख शान्ति रखना, तथा बाहरी शत्रुओं से देश की रक्षा करना । वेश्यों का काम था व्यापार करके धन-धान्य की वृद्धि करना। और शूद्रों का काम था तीनों ऊपर के वर्णो की सेवा करना। इस विभाजन का नाम उन्होंने 'वर्ण-व्यवस्था' रखा था। यह एक प्रारम्भिक भूल थी जिसने हिन्दू-जाति को इतना दुर्बल बना दिया कि अब वह किसी का सामना नहीं कर सकती। यदि किसी बङी नदी को छोटी छोटी अनेक नहरों में विभक्त कर दिया जाय, तो उसमें वह शक्ति नहीं रह जाती जिसके द्वारा यह सैकड़ों चट्टानों को उखाड़ फेंकती है। न उसमें बड़े बड़े जलयान चल सकते हैं। इसी तरह यदि किसी मोटी रस्सी को चार भागों में बांट दिया जाय, अर्थात यदि उसकी चारों डोरिया (जिन से मिल कर वह इतनी सुदृढ़ बनी थी) पृथक पृथक करदी जायें, तो उनमें यह दृढ़ता नहीं रहती, भले ही उन चारों डोरियों को मिल काम में लाया जाय। कारण, जिस 'बट' ने उनको परस्पर मिलाकर उनकी दृढ़ता में वृद्धि की थी, वह अब उनमें नहीं रह गयी थी। यह तो तभी सम्भव है जब कि उन चारों में बट देकर उनसे एक रस्सी बना ली