पृष्ठ:जातिवाद का उच्छेद - भीम राव अंबेडकर.pdf/१८१

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जाय । इसी तरह हिन्दू जाति को भी पहले परस्पर प्रेम की बट द्वारा पक कर रखा गया था। अब उसके चार भाग कर दिये गये । इसीलिये वह बट विनष्ट हो गयी और हिन्दू-जाति दुर्बलता के गड्ढे में जा गिरी। किन्तु, यह विभाजन यही समाप्त नहीं हुआ। उदाहरण से आपको समझाता हूँ। वह जो ऊपर की सीट पर आपका सामान पड़ा है, उसके ऊपर सूत की पक मोटी रस्सी बँधी हुई है। यदि आज्ञा हो तो मैं थोड़ी देर के लिये उसे खोल लू?

श्रीमती कूपर- "हाँ, हाँ, खुशी से"।

किशोर ने उठ कर वह रस्सी खोल ली उस की लड़ियों की ओर देख कर बोला-बहुत ही अच्छा हुआ, इस में भी चार ही लड़ियां हैं । उदाहरण भी चोखा ही मिला है। अच्छा आप देखिए, अपने असली रूप में यह रस्सी कितनी मज़बूत है । दुर्बल मनुष्य इसे कदापि तोड़ नहीं सकता। अब मैं इस की चारों लाड़ियों को पृथक करता हूँ । अब देखिये, यदि इन चारों लङियों को मिलाकर भी खींचा जाय, तो भी ये पहले से बहुत कमजोर हैं । ज़ोर से खींचते ही इन में से कमज़ोर सब से पहले टूटेगी और दूसरी सब, एक के बाद एक, टूटती चली जायेंगी। यह तो इनका विभाग नं० एक हैं। इनका 'विभाग न० दो' करता हूँ। अर्थात् प्रत्येक लड़ी जिन धागों से बनी है, उन सब को पृथक पृथक कर देता हूँ। अब देखिए प्रत्येक धागा कैसी सरलता से टूटता है । अर्थात् यह धागा जब रस्सी में था, तो इतना दृढ़ था कि तरुण मनुष्य भी इसे तोड़ न सकता था। किन्तु अब तो उसे दो वर्ष का बच्चा भी तोड़ सकता है। ये एक एक