है कि इस पर कोई प्रभाव नहीं होता। भक्त कबीर ने इसके तोड़ने का भरसक प्रयत्न किया। उनका एक पद सुनिये--
जो तू ब्राह्मण ब्राह्मी-जाया।
और बाट काहे नहिं आया ?
तुम कत ब्राह्मण, हम कत सूद ?
हम कत लोहू, तुम कत दूध ?
अर्थात्--यदि तू सचमुच ब्राह्मण है और हम ( शद्रा) से ऊँचा है, तो किसी अन्य मार्ग से क्यों नहीं आया ? तुने हमारे ही समान जन्म क्यों लिया ? क्या हमारी नसों में लोहू और तुम्हारी नसों में दूध भरा हैं? यदि नहीं, तो फिर तुम कैसे ब्राह्मण हो गये और हम कैसे शुद्र हो गये ? जैसे तुम हो वैसे ही हम हैं।
इसी तरह गुरू नानकदेव जी ने इसे तोइन का यत्न किया। उनका एक वाक्य है---
एक नूर से सब जग उपज्या
कौन भले कौन मन्दै ?
अर्थात्---एक ही ईश्वर से सम्पूर्ण सृष्टि उत्पन्न हुई है। फिर कौन ऊँचा और कौन नीचा है ? उनके पश्चात आर्य-समाज के प्रवर्तक ऋषि दयानन्द ने इस वर्ण-यवस्था को मरण-व्यवस्था कहा है। किन्तु खेद हैं कि उन्होंने स्पष्ट रूप से इसके विरुद्ध घोषणा करके मरती हुई हिन्दू जाति को इस डायन से नहीं बचाया।
श्रीमती कूपर---तो आज भी इसको तोड़ने का कोई यत्न हो रहा है या नहीं ?
किशोर--हाँ जी, हो रहा है। पंजाब में जात-पाँत तोड़क मंडल स्थापित है, जिसका केन्द्र लाहौर में है। उसका जन्म