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जाति-भेद क्यों नहीं मिटता


हिन्दुओं से कह सकें कि तुम्हारी सारी खराबी तुम्हारे धर्म-ग्रन्थों की है, उन धर्म-ग्रन्थों की है जिन्हों ने तुम में शाति-भेद की पवित्रता की झूटी भावना उत्पन्न कर रखी है। क्या हम यह साहस दिखलायेंगे ?

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जाति-भेद क्यों नहीं मिटता

हिन्दू-समाज से जाति-भेद मिटाना कोई सुगम कार्य नहीं । इस के मार्ग में अनेक बाधाएँ हैं। मैं तो जाति-भेद का मिटा देना प्रायः असम्भव समझता हूँ। इस का एक कारण शत्रुता का वह भाव है जो ब्राह्मणों ने इस समस्या के प्रति दिखलाया है । ब्राह्मण राजनीतिक सुधार और, कुछ अवस्थाओं में, आर्थिक सुधार के आन्दोलन की अग्रगामी सेना बने हुए हैं। परन्तु जाति-भेद के कच्चे मोर्चा को तोड़ने के लिए तैयार की गई सेना में वे पीछे चलने वाले खलासी भी नहीं बनते। क्या इस कार्य में भविष्य में ब्राह्मणों के नेता बन कर आगे आने की कोई आशा है ? मेरा उत्तर है, नहीं। आप पूछेगे,क्यों ? आप कह सकते हैं कि कोई कारण नहीं कि ब्राह्मण सामाजिक सुधार से परहेज करते रहेंगे। आप कह सकते हैं कि श्राह्मण जानते हैं कि हिन्दू समाज के लिए वर्ग-भेद विष के समान है, इसलिए एक प्रबुद्ध श्रेणी होने के कारण वे इसके परिणामों से उदासीन नहीं हो सकते । आप कह सकते हैं कि याजक और लौकिक दो प्रकार के ब्राह्मण हैं; यदि याजक ब्राह्मण जाति-भेद को तोड़ने वालों की ओर से डंडी नहीं उठायँगे, तो लौकिक ब्राह्मण जरूर उठायँगे। यह सब ऊपर से बहुत युक्तियुक्त प्रतीत होता है। परन्तु इस सब में यह भूल न जाना चाहिये कि जाति-भेद के टूटने से ब्राह्मण जाति पर