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पुरोहितशाही पर नियन्त्रण की आवश्यकता


आक्रमण करने के लिए आप सब हिन्दुओं के आप की सेना में भरती होने की आशा नहीं कर सकते ।

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पुरोहितशाही पर नियन्त्रण की अवश्यकता

हिन्दू-जनता को जाति-भेद के रोग से मुक्त करने के लिए आवश्यक है कि (१) बाक़ी सब पुस्तकों को छोड़ कर एक ही धर्म-ग्रन्थ रक्खा जाय जो सभी हिन्दुओं को मान्य हो । जो मनुष्य दूसरी पुस्तकों में लिखे सिद्धान्तों को धर्म-सिद्धान्त बता कर प्रचार करे उसे दण्डनीय ठहराया जाय । (२) अच्छा हो कि हिन्दुओं में से पुरोहित-शाही की समाप्ति कर दी जाय । परन्तु यह बात असंभव जान पड़ती है। इस लिए पुरोहित को नहीं पद परम्परागत नहीं रहने देना चाहिए । प्रत्येक ऐसे व्यक्ति को जो अपने को हिन्दू कहता है पुरोहित बनने का अधिकार होना चाहिये । यह कानून होना चाहिए कि कोई हिन्दू तब तक पुरोहित बन सकेगा जब तक वह राज्य द्वारा निर्धारित परीक्षा नहीं पास करेगा और जब तक उसके पास पुरोहित का काम करने की राज्य से मिली हुई सनद न होगी । (३) जिसे पुरोहित के पास सनद न हो उसका कराया हुआ कोई संस्कार कानून की दृष्टि में न्यायसंगत न समझा जाय और सनद के बिना पुरोहित का कृत्य कराने वाले व्यक्ति को दण्डनीय ठहराया जाये ।(४) पुरोहित भी दूसरे लोक-सेवकों की तरह राज्य का नौकर हो, उसे राज्य से वेतन मिले, और दूसरे नागरिकों के साथ देश के साधारण राज- नियम के अधीन होने के अतिरिक्त वह अपने आचार, विश्वास और पूजा-पाठ के विषयों में राज्य-नियन्त्रण के अधीन हो ।