विकलता के रूप में अनुभव करते हैं। दूसरे प्रकार की भावना पदमावत में अधिक मिलती है।
आरंभ में कह आए हैं कि 'पदमावत' के ढंग के रहस्यवादपूर्ण प्रबंधों की परंपरा जायसी से पहले की है, मृगावती, मधुमालती आदि की रचना जायसी के पहले हो चुकी थी और उनके पीछे भी ऐसी रचनाओं की परंपरा चली। सबमें रहस्यवाद मौजूद है। अतः हिंदी के पुराने साहित्य में 'रहस्यवादी कविसंप्रदाय' यदि कोई कहा जा सकता है तो इन कहानी कहनेवाले मुसलमान कवियों का ही।
जायसी कवि थे और भारतवर्ष के कवि थे। भारतीय पद्धति के कवियों की दृष्टि फारसवालों की अपेक्षा प्राकृतिक वस्तुओं और व्यापारों पर कहीं अधिक विस्तृत तथा उनके मर्मस्पर्शी स्वरूपों को कहीं अधिक परखनेवाली होती है। इससे उस रहस्यमयी सत्ता का आभास देने के लिये जायसी बहुत ही रमरणीय और मर्मस्पर्शी दृश्यसंकेत उपस्थित करने में समर्थ हुए हैं। कबीर के चित्रों (इमैजरी) की न वह अनेकरूपता है, न वह मधुरता। देखिए, उस परोक्ष ज्योति और सौंदर्य-सत्ता की ओर कैसी लौकिक दीप्ति और सौंदर्य के द्वारा जायसी संकेत करते हैं—
बहुतै जोति जोति ओहि भई।
रवि, ससि, नखत दिपहिं ओहि जोती। रतन पदारथ, मानिक मोती॥
जहँ जहँ बिहँसि सुभावहिं हँसी। तहँ तहँ छिटकि जोति परसी॥
नयन जो देखा कुँवल भा, निरमल नीर सरीर।
हँसत जो देखा हंस भा, दसनजोति नग हीर॥
प्रकृति के बीच दिखलाई देनेवाली सारी दीप्ति उसी से है, इस बात का आभास पद्मावती के प्रति रत्नसेन के ये वाक्य दे रहे हैं—
अनु धनि! तू निसिअर निसि माहाँ। हौं दिनिअर जेहि के तू छाहाँ॥
चाँदहि कहाँ जोति औ करा। सुरुज के जोति चाँद निरमरा॥
अँगरेज कवि शेली की पिछली रचनाओं में इस प्रकार के रहस्यवाद की झलक बड़ी सुन्दर दृश्यावली के बीच दिखाई देती है। स्त्रीत्व का आध्यात्मिक आदर्श उपस्थित करनेवालों (एपीसाइकीडिअन) में प्रिया की मधुर वाणी प्रकृति के क्षेत्र में कहाँ कहाँ सुनाई पड़ती है—
इन सालीचूड्स,
हर वायस केम टु मी थ्रू दि व्हिस्परिंग उड्स,
ऐंड फ्राम दि फाउन्टेंस, ऐंड दि ओडर्स डीप
आफ फ्लावर्स व्हिच, लाइक लिप्स मरमरिंग इन देयर स्लीप
आफ दि स्वीट किसेज व्हिच हैड लव्ड देम देयर,
ब्रीद्ड बट आफ हर टु दि इनैमर्ड एअर;
ऐंड फ्राम दि ब्रीजेज व्हेदर लो आर लाउड,
ऐंड फ्राम दि रेन आफ एव्री पासिंग क्लाउड,
ऐंड फ्राम दि सिंगिंग आफ् दि समर वर्ड्स,
ऐंड फ्राम आल साउंड्स, आल साइलैंस।