पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/१५८

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राजा जाइ तहाँ बहि लागा। जहाँ न कोई सँदेसी कागा॥
तहाँ एक परबत अह डूँगा। जहवाँ सब कपूर और मूँगा॥

जायसी ने चित्तौर से सिंहल जाने का जो मार्ग वर्णन किया है वह यद्यपि बहुत संक्षिप्त है पर उससे कवि की दक्षिण अर्थात मध्य प्रदेश के स्थानों की जानकारी प्रकट होती है। चित्तौर से रत्नसेन पूर्व की ओर चले हैं। कुछ दूर चलने पर जायसी कहते हैं—

'दहिने बिदर, चँदेरी बाएँ'॥

'चँदेरी' आज कल ग्वालियर राज्य के अंतर्गत है और ललितपुर से पश्चिम पड़ता है? बिदर गोलकुंडे के पास वाला सुदूर दक्षिण का बिदर नहीं बल्कि बरार (प्राचीन विदर्भ)[१] के अंतर्गत एक स्थान था। जायसी का बिदर से अभिप्राय विदर्भ या बरार से है। रत्नसेन चित्तौर से कुछ दक्षिण लिये पूर्व की ओर चला और रतलाम के पास आ निकला जहाँ से चंदेरी बाईं ओर या उत्तर और बरार दक्षिण पड़ेगा। यहाँ से शुक राजा से विजयगढ़ (जो सूबा मालवा के भीतर था और जिसका प्रधान नगर विजयगढ़ था) होते हुए और अँधियार खटोला (होशंगाबाद और सागर के बीच के प्रदेश) को बाईं या उत्तर ओर छोड़ते हुए गोंड़ों के देश गोंडवाने में पहुँचने को कहता है—

सुनु मत, काज चहसि जो साजा। बीजानगर बिजयगढ़ राजा॥
पहुँचहु जहाँ गोड़ औ कोला। तजि बाएँ अँधियार खटोला॥

विजयगढ़ इंदौर के दक्षिण नर्मदा के दोनों ओर फैला हुआ राज्य था। तात्पर्य यह कि रत्नसेन रतलाम के पास से चलकर इंदौर के दक्षिण नर्मदा के किनारे होता हुआ हँड़िया या हरदा के पास निकला जहाँ से पूरब जानेवाले को होशंगाबाद (अँधियार खटोला) उत्तर या बाईं ओर पड़ेगा। हँड़िया बरार की उत्तरी सीमा पर था और बरार के दक्षिण तिलंगाना देश माना जाता था जो आजकल के बरार का ही दक्षिणी भाग है। हँड़िया के उत्तर जबलपुर पड़ेगा जिसके पास गढ़कंटक था। अतः इस स्थान पर (हँड़िया के पास) शुक का कहना बहुत ही ठीक है कि—

दक्खिन दहिने रहिं तिलंगा। उत्तर बाएँ गढ़ काटंका॥

हँड़िया के पास से फिर आगे बढ़ने के लिये तोता इस प्रकार कहता है—

माँझ रतनपुर सिंहदुवारा। झारखंड देइ बाँव पहारा॥

यहाँ पर कवि ने केवल छंद के बंधन के कारण 'सिंहदुवारा' (छिंदवाड़ा) के पहले रतनपुर रख दिया है। हँड़िया के पास पूरब चलनेवाले को छिंदवाड़ा पड़ेगा तब रतनपुर जो बिलासपुर जिले में है। रतनपुर से फिर शुक झारखंड (सरगुजा का जंगल) उत्तर छोड़ते हुए आगे बढ़ने को कहता है। यदि बराबर से आगे बढ़ा


  1. आईने अकबरी में सूबा बरार का उत्तर दक्षिण विस्तार हँड़िया (मध्य-प्रदेश की पश्चिमी सीमा पर नर्मदा के किनारे एक छोटा कसबा) से बिदर तक १८० कोस लिखा है और बरार के दक्षिण तिलंगाना बताया गया है।