(४) मानसरोदक खंड
एक दिवस पून्यो तिथि आई। मानसरोदक चली नहाई॥
पदमावति सब सखी बुलाई। जनु फुलवारि सबै चलि आई॥
कोइ चंपा कोइ कुंद सहेली। कोई सु केत, करना, रस बेली॥
कोइ सु गुलाल सुदरसन राती। कोई सो बकावरि-बकुचन भाँती॥
कोइ सो मौलसिरि, पुहपावती। कोई जाही जूही सेवती॥
कोई सोनज़रद, कोइ केसर। कोइ सिंगारहार नागेसर॥
कोइ कूजा सदबर्ग चमेली। कोई कदम सुरस रस बेली॥
चलीं सबै मालति सँग, फूल कँवल कुमोद।
बेधि रहे गन गंधरब, बासपरमदामोद॥१॥
खेलत मानसरोवर गईं। जाइ पाल पर ठाढ़ी भईं॥
देखि सरोवर हँसै कुलेली। पदमावति सौं कहहिं सहेली॥
ए रानी! मन देख बिचारी। एहि नैहर रहना दिन चारी॥
जौ लगि अहै पिता कर राजू। खेलि लेहु जो खेलहु आजू॥
पुनि सासुर हम गवनब काली। कित हम, कित यह सरवर पाली॥
कित आवन पुनि अपने हाथा। कित मिलि कै खेलब एक साथा॥
सासु ननद बोलिन्ह जिउ लेहीं। दारुन ससुर न निसरै देहीं॥
पिउ पियार सिर ऊपर, पुनि सो करै दहुँ काह।
दहुँ सुख राखै की दुख, दहुँ कस जनम निबाह॥२॥
मिलहिं रहसि सब चढ़हिं हिंडोरी। झूलि लेहिं सुख बारी भोरी॥
झूलि लेहु नैहर जब ताईं। फिरि नहिं झूलन देइहिं साईं॥
पुनि सासुर लेइ राखिहिं तहाँ। नैहर चाह न पाउब जहाँ॥
कित यह धूप, कहाँ यह छाहाँ। रहब सखी बिनु मंदिर माहाँ॥
गुन पूछिहि औ लाइहिं दोखू। कौन उतर पाउब तहँ मोखू॥
सासु ननद के भौंह सिकोरे। रहब सँकोचि दुवौ कर जोरे॥
कित यह रहसि जो आउब करना। ससुरेइ अंत जनम दुख भरना॥
कित नैहर पुनि आाउब, कित ससुरे यह खेल।
आपु आपु कहँ होइहि, परब पंखि जस डेल॥३॥
सरवर तीर पदमिनी आई। खोंपा छोरि केस मुकलाई॥
ससिमुख, अंग मलयगिरि बासा। नागिन झाँपि लीन्ह चहुँ पासा॥
केत = केतकी। करना = एक फूल। कूजा = सफेद जंगली गुलाब। (२) पाल = बाँध, भीटा, किनारा। (३) चाह = खबर।