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मानसरोदक खंड

ओनई घटा परी जग छाँहा। ससि कै सरन लीन्ह जनु राहाँ॥
छपि गें दिनहिं भानु कै दसा। लेइ निसि नखत चाँद परगसा॥
भूलि चकोर दीठि मुख लावा। मेघघटा महँ चंद देखावा॥
दमन दामिनी, कोकिल भाखी। भौंहें धनुख गगन लेइ राखी॥
नैन खँजन दुह केलि करेहीं, कुच नारँग मधुकर रस लेहीं॥

सरवर रूप बिमोहा, हिये हिलोरहिं लेइ।
पाँव छुवै मकु पावौं एहि मिस लहरहिं देइ॥४॥

धरी तीर सब कंचुकि सारी। सरवर महँ पैठीं सब बारी॥
पाइ नीर जानौं सब बेली। हुलसहिं करहिं काम कै केली॥
करिल केस बिसहर बिस-भरे। लहरैं लेहिं कँवल मुख धरे॥
नवल बसंत सँवारी करी। होई प्रगट जानहु रस भरी॥
उठी कोप जस दारिवँ दाखा। भई उनंत पेम कै साखा॥
सरिवर नहिं समाइ संसारा चाँद नहाइ पैठ लेइ तारा॥
धनि सो नीर ससि तरई ऊईं। अब कित दीठ कमल औ कूई॥

चकई बिछुरि पुकारै, कहाँ मिलौं, हो नाहँ।
एक चाँद निसि सरग महँ, दिन दूसर जल माहँ॥५॥

लागीं केलि करै मझ नीरा। हंस लजाइ बैंठ ओहि तीरा॥
पदमावति कौतुक कहँ राखी। तुम ससि होहु तराइन्ह साखी॥
बाद मेलि कै खेल पसारा। हार देइ जो खेलत हारा॥
सँवरिहि साँवरि, गोरिहि गोरी। आपनि आपनि लीन्ह सो जोरी॥
बूझि खेल खेलहु एक साथा। हार न होइ पराए हाथा॥
आजुहि खेल, बहुरि कित होई। खेल गए कित खेलैं कोई?॥
धनि सो खेल खेल सह पेमा। रउताई औ कूसल खेमा?॥

मुहमद बाजी पेम कै ज्यौं भावै त्यों खेल।
तिल फूलहि के संग ज्यों होइ फुलायल तेल॥६॥

सखी एक तेइ खेल न जाना। भै अचेत मनिहार गवाँना॥
कवँल डार गहि भै बेकरारा। कासों पुकारौं ओपन हारा॥
कित खेलै आइउँ एहि साथा। हार गँवाइ चलिउँ लेइ हाथा॥
घर पैठत पूँछब यह हारू। कौन उतर पाउब पैसारू॥
नैन सीप आँसू तस भरे। जानौ मोति गिरहिं सब ढरे॥
सखिन कहा बौरी कोकिला। कौन पानि जेहि पौन न मिला?
हार गँवाइ सो ऐसौ रोवा। हेरि हेराइ लेइ जौं खोवा॥


डेल = बहेलिए का डला (४) खोंपा = चोटी का गुच्छा, जूरा। मुकलाई = खोलकर। मकु = कदाचित्। (५) करिल = काले। बिसहर = विषधर, साँप। करी = कली। कोंप = कोंपल। उनंत = झुकती हुई। (६) साखी = निर्णयकर्ता, पंच। बाद मेलि कै = बाजी लगाकर।