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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२१८

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पदमावत

अब मैं पंथ प्रेम सिर मेला। पाँव न ठेलु, राखु कै चेला॥
पेम बार सो कहै जो देखा। जो न देख का जान बिसेखा॥
तौ लगि दुख पीतम नहि भेंटा। मिले, तौ जाइ जनम दुख मेटा॥

जस अनूप, तू बरनेसि, नखसिख बरनु सिंगार।
है मोहिं आस मिलै कै, जौ मेरवै करतार॥७॥






अर्थात् नागपाश। धै = धरकर। चीन्हा=चिह्न, लकीर, रेखा। (७) ऊबि कै साँस लीन्ह=लंबी साँस ली। दुहेला = कठिन खेल। पाँव न ठेलु = पैर से न ठुकरा, तिरस्कार न कर। बिसेखा = मर्म।