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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२१९

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(१०) नखशिख खंड

का सिंगार ओहि बरनौं, राजा। ओहिक सिंगार ओहि पै छाजा॥
प्रथम सीस कस्तूरी केसा। बलि बासुकि, का और नरेसा॥
भौंर केस, वह मालति रानी। बिसहर लुरे लेहिं अरघानी॥
बेनी छोरि झार जौं बारा। सरग पतार होइ अँधियारा॥
कोंवर कुटिल केस नग करे। लहरिन्हिं भरे झुअँग बैसारे॥
बेधे जनौं मलयगिरि बासा। सीस चढ़े लोटहिं चहुँ पासा॥
घुँघरवार अलकैं विषभरी। सँकरैं पेम चहैं गिउ परी॥

अस फँदवार केस वै, परा सीस गिउ फाँद।
अस्टौ कुरो नाग सब, अरुझ केस के बाँद॥१॥

बरनौं माँग सीस उपराहीं। सेंदुर अबहिं चढ़ा जेहि नाहीं॥
बिनु सेंदुर अस जानहु दीआ। उजियर पंथ रैनि महँ कीआ॥
कंचन रेख कसौटी कसी। जन घन महँ दामिनि परगसी॥
सुरुज किरिन जनु गगन बिसेखी। जमुना माँह सुरसती देखी॥
खाँड़ै धार रुहिर जनु भरा। करवत लेइ बेनो पर धरा॥
तेहि पर पूरि धरे जो मोती। जमुना माँझ गंग कै सोती॥
करवत तपा लेहिं होइ चूरू। मकु सो रुहिर लेइ देइ सेंदूरू॥

कनक दुवादस बानि होइ, चह सोहाग वह माँग।
सेवा करेहिं नखत सब, उवै गगन जस गाँग॥२॥

कहौं लिलार दुइज कै जोती। दइजहि जोति कहाँ जग ओती॥
सहस किरिन जो सुरुज दिपाई। देखि लिलार सोउ छपि जाई॥
का सरिवर तेहिं देउँ मयंकू। चाँद कलंकी, वह निकलंकू॥
औ चाँदहि पुनि राहु गरासा। वह बिनु राहु सदा परगासा॥
तेहि लिलार पर तिलक बईठा। दुइज पाट जानहु धुव दीठा॥


(१) संकरैं = शृंखला, जंजीर। फँदवार = फँद में फँसानेवाले। बलि = निछावर हैं। लुरे = लढ़ते या लहरते हुए। अरघानि = महँक, आघ्राण। अस्ट कुरी = अष्टकुलनाग (ये हैं—वासुकि, तक्षक, कुलक, ककोंटक, पद्म, शंखचूड़, महापद्म, धनंजय। (२) उपराहीं = ऊपर। रुहिर = रुधिर। करवत = करपत्र, आरा। बेनी (क) त्रिवेणी, (ख) वेणी। करवत लेइ = पहले मोक्ष के लिये कुछ लोग त्रिवेणी संगम पर अपना शरीर आरे से चिरवाते थे, इसी को करवत लेना कहते थे। वहाँ एक आरा इसके लिये रखा रहता था। काशी में भी ऐसा स्थान था जिसे काशी करवट कहते हैं। तपा = तपस्वी।