पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२५

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जान पड़ता है कि 'पद्मावत' की कथा को लेकर थोड़े से पद्य जायसी ने रचे थे। उसके पीछे वे जायस छोड़कर बहुत दिनों तक इधर उधर रहे। अंत में जब वे जायस में पाकर रहने लगे तब उन्होंने इस ग्रंथ को उठाया और पूरा किया। इस बात का संकेत इन पंक्तियों में पाया जाता है--

जायस नगर धरम अस्थान्। तहाँ पाइ कवि कीन्ह बखानू।।

'तहाँ आइ' से पं० सुधाकर और डाक्टर ग्रियर्सन ने यह अनुमान किया था कि मलिक मुहम्मद किसी और जगह से पाकर जायस में बसे थे। पर यह ठोक नहीं। जायसवाले ऐसा नहीं कहते। उनके कथनानुसार मलिक मुहम्मद जायस ही के रहनेवाले थे। उनके घर का स्थान अब तक लोग वहाँ के कंवाने मुहल्ले में बताते हैं। 'पद्मावत' में कवि ने अपने चार दोस्तों के नाम लिए हैं--यूशुफ़ मलिक, सालार कादिम, सलोने मियाँ और बड़े शेख। ये चारों जायस हो के थे। सलोने मियाँ के संबंध में अब तक जायस में यह जनश्रुति चलो आती है कि वे बड़े बलवान थे और एक बार हाथी से लड़ गए थे। इन चारों में से दो एक के खानदान अब तक हैं। जायसी का वंश नहीं चला, पर उनके भाई के खानदान में एक साहब मौजद हैं जिनके पास वंशवृक्ष भी है। यह वंशवृक्ष कुछ गड़बड़ सा है।

जायसी कुरूप और काने थे। कुछ लोगों के अनुसार वे जन्म से ही ऐसे थे पर अधिकतर लोगों का कहना है कि शीतल या अर्धांग रोग से उनका शरीर विकृत हो गया था। अपने काने होने का उल्लेख, कवि ने आप ही इस प्रकार किया है-- 'एकनयन कवि मुहमद गुनो'। उनको दाहिनी आँख फूटी थी या बाईं, इसका उत्तर शायद इस दोहे से मिले--

मुहमद बाई दिसि तजा, एक सरवन एक आँखि।

इससे अनुमान होता है कि बाएँ कान से भी उन्हें कम सुनाई पड़ता था। जायस में प्रसिद्ध है कि वे एक बार शेरशाह के दरबार में गए। शेरशाह उनके भद्दे चेहरे को देख हँस पड़ा। उन्होंने अत्यंत शांत भाव से पूछा--'मोहि हससि, कि कोहरहि?' अर्थात् तू मुझपर हँसा या उस कुम्हार (गढ़नेवाले ईश्वर) पर? इसपर शेरशाह ने लज्जित होकर क्षमा माँगी। कुछ लोग कहते हैं कि वे शेरशाह के दरबार में नहीं गए थे; शेरशाह ही उनका नाम सुनकर उनके पास आया था।

मलिक मुहम्मद एक गृहस्थ किसान के रूप में ही जायस में रहते थे। वे प्रारंभ से बड़े ईश्वरभक्त और साधु प्रकृति के थे। उनका नियम था कि जब वे अपने खेतों में होते तब अपना खाना वहीं मँगा लिया करते थे। खाना वे अकेले कभी न खाते; जो आसपास दिखाई पड़ता उसके साथ बैठकर खाते थे। एक दिन उन्हें इधर उधर कोई न दिखाई पड़ा। बहुत देर तक आसरा देखते देखते अंत में एक कोढ़ी दिखाई पड़ा। जायसो ने बड़े आग्रह से उसे अपने साथ खाने का बिठाया और एक ही बरतन में उसके साथ भोजन करने लगे। उसके शरीर में कोड़ चू रहा था। कुछ थोड़ा सा मवाद भोजन में भी चू पड़ा। जायसी ने उस अंश को खाने के लिये उठाया पर उस कोड़ो ने हाय थान लिया और कहा, 'इसे मैं खाऊँगा, आप साफ हिस्सा खाइए' पर जायसी झट से उसे खा गए। इसके पोछे वह कोड़ी अदृश्य