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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२४६

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पदमावत


अब जोबन बारी को राखा। कुंजर विरह बिधंसै साखा॥
मैं जानेउँ जोबन रस भोगू। जोबन कठिन सँताप बियोगू॥
जोबन गरुअ अपेल पहारू। सहि न जाइ जोवन कर भारू॥
जोबन अस मैमंत न कोई। नवैं हस्ति जौं आँकुस होई॥
जोबन भर भादौं जस गंगा। लहरैं देइ, समाइ न अंगा॥

परिउँ अथाह, धाय! हौं जोवन उदधि गँभीर।
तेहि चितवौं चारिहु दिसि जो गहि लावै तीर॥३॥

पदमावति! तुइँ समुद सयानी। तोहि सर समुद न पूजै रानी॥
नदी समाहिं समुद महँ आई। समुद डोलि कहु कहाँ समाई॥
अबहीं कवँल करी हिय तोरा। आइहि भौंर जो तो कहूँ जोरा॥
जोबन तुरी हाथ गहि लीजिय। जहाँ जाइ तहँ जाइ न दीजिय॥
जोबन जोर मात गज अहै। गहहु ज्ञान आँकुस जिमि रहै॥
अबहिं बारि तुइँ पेम न खेला। का जानसि कस होइ दुहेला॥
गगन दीठि करू नाइ तराहीं। सुरुज देखु कर आवै नाहीं॥

जब लगि पीउ मिलै नहिं, साधु पेम के पीर।
जैसे सीप सेवाति कहँ, तपै समुद मँझ नीर॥४॥

दहै, धाय! के जोबन एहि जीऊ। जानहुँ परा अगिनि महँ घीऊ॥
करवत सहौं होत दुइ आधा। सहिन जाइ जोबन के दाधा॥
बिरह समुद्र भरा असँभारा। भौंर मेलि जिउ लहरिन्ह मारा॥
विहग नाग होइ सिर चढ़ि डसा। होइ अगिनि चंदन महूँ बसा॥
जोवन पंखी, बिरह बियाधू। केहरि भयउ कुरंगिनि खाधू॥
कनक पानि कित जोबन कीन्हा। औटन कठिन बिरह ओहि दीन्हा॥
जोबन जलहि बिरह मसि छूआ। फूलहिं भौंर, फरहिं भा सूआ॥

जोबन चाँद उआ जस, बिरह भएउ सँग राहु।
घटतहि घटत छीन भइ, कहै न पारौं काहु॥५॥


(३) मैमंत = मदमत्त। अपेल = न ठेलने योग्य। (४) समुद - समुद्र सी, गंभीर। तुरी = घोड़ी। मात = माता हुआ, मतवाला। गगन दीठि तराहीं = पहले कह आए हैं कि 'भौंर दीठि मनो लागि अकासू'। (५) दाधा = दाह, जलन। होइ अगिनि चंदन महँ बसा = वियोगियों को चंदन से भी ताप होना प्रसिद्ध है। कैहरि भएउ खाधू = जैसे हिरनी के लिये सिंह, वैसे ही यौवन के लिये विरह हुआ। औटन = पानी का गरम करके खौलाया जाना। मसि = कालिमा। फूलहि भौंर' सुआ = जैसे फूल को बिगाड़ने वाला भौंरा और फल को नष्ट करनेवाला तोता हुआ वैसे ही यौवन को नष्ट करनेवाला बिरह हुआ।