सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६८
पदमावत


काह कहौं हों ओहि सौं जेइ दुख कीन्ह निमेट।
तेहि दिन आगि करै वह (बाहर) जेहि दिन होइ सो भेंट॥६॥

सुनि कै धनि ‘जारी अस कथा’। मन भी मयन, हिये भै मया॥
देखौं जाइ जरै कस भानू। कंचन जरे अ्रधिक होइ बानू॥
अब जौं मरै वह पेम बियोगी। हत्या मोहिं, जेहि कारन जोगी॥
सुनि कै रतन पदारथ राता। हीरामन सौं कह यह बाता॥
जौ वह जोग सँभारे छाला। पाइहि भुगुति, देहँ जयमाला॥
आय बसंत कुसल जौं पावौं। पूजा मिस मंडप कहँ आवौं॥
गुरू के वैन फूल हौं गाँथे। देखौं नैन, चढ़ावौं माथे॥

कवँल भवर तुम्ह बरना, मैं माना पुनि सोइ।
चाँद सूर कहँ चाहिए, जौं रे सूर वह होइ॥७॥

हीरामन जो सुना रस बाता। पावा पान भएउ मुख राता॥
चला सुआ, रानी तव कहा। भा जो परावा कैसे रहा॥
जो निति चलै संवारे पाँखा। आजु जो रहा, काल्हि को राखा॥
न जनौं आजु कहाँ दहुँ ऊआ। आएहु मिलै, चलेह मिलि, सूआ॥
मिलि कै विछुरि मरन कै आना। किस आएहु जौं चलेहु निदाना॥
सुनू रानी हौं रहतेऊँ राँधा। कैसे रहौं बचन कर बाँधा॥
ताकरि दिस्टि ऐसि तुम्ह सेवा। जैसे कुंज मन रहै परेवा॥

बसै मीन जल धरती, अंबा बसे अकास।
जौ पिरीत पै दुवौ महँ अंत होहिं एक पास॥८॥

आवा सुआ बैठ जहँ जोगी। मारग नैन, बियोग बियोगी॥
आइ पेम रस कहा संँदेसा। गोरख मिला, मिला उपदेसा॥
तुम्ह कहँ गुरू मया बहु कीन्हा। कीन्ह अदेस, आदि कहि दीन्हा॥
सबद, एक उन्ह कहा अकेला। गुरु जस भिंग, फनिग जस चेला॥


काह कहाँ हों...निमेट = सूआ रानी से पूछता है कि मैं उस राजा के पास जाकर क्या संदेसा (उत्तर) कहूँ जिसने इतना न मिटनेवाला दुःख उठाया है। (७) बानू = वर्ण, रंगत। छाला = मृगचर्म पर। फूल हौं गाँथे = तुम्हारे (गुरु के) कहने से उसके लिये प्रेम की माला मैंने गूँथ ली। (८) पावा पान = विदा होने का बीड़ा पाया। चलै = चलने के लिये। राँधा = पास, समीप। ताकरि = रतनसेन की। तुम्ह सेवा = तुम्हारी सेवा में। अंबा = आम का फल। बसै मीन...पास = जब मछली पकाई जाती है तबं आम की खटाई पड़ जाती हैं; इस प्रकार आम और मछली का संयोग हो जाता है। जिस प्रकार आम और मछली दोनों का प्रेम एक जल के साथ होने से दोनों में प्रेम संबंध होता है उसी प्रकार मेरा और रतनसेन दोनों का प्रेम तुम पर है इससे जब दोनों विवाह के द्वारा एक साथ हो जायँगे तब मैं भी वहीं रहूँगा। मारग = मार्ग में (लगे हुए)॥ आदि = प्रेम का मूल मंत्र।