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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२५५

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बसंत खंड


भा बिनु जिउ नहिं आवत ओझा। विष भइ पूरि काल भा गोझा॥
जो देखै जनु बिसहर डसा। देखि चरित पदमावति हँसा॥
भल हम आइ मनावा देवा। गा जनु सोइ, को मानै सेवा? ॥
को हींछा पूरै, दुख खोवा। जेहि मानै आए सोइ सेवा॥
जेहि धरि सखी उठावहिं सीस विकल नहिं डोल।
धर कोइ जीव न जानौं, मुख रे बकत कुबोल॥ १० ॥
ततखन एक सखी बिहँसानी। कौतुक आइ न देखहु रानी॥
पुरुब द्वार मढ़ जोगी छाए। न जानौं कौन देस तें आए॥
जनु उन्ह जोग तंत तन खेला। सिद्ध होइ निसरे सब चेला॥
उन्ह महँ एक गुरू जो कहावा। जनु गुड़ देइ काहू बौरावा॥
कुँवर बतीसौ लच्छन राता। दसएँ लछन कहै एक बाता॥
जानौं आहि गोपिचंद जोगी। की सो आहि भरथरी बियोगी॥
वै पिंगला गए कजरी आरन। ए सिंघल आए केहि कारन? ॥
यह मूरति, यह मुद्रा, हम न देख अवधूत।
जानौं होहिं न जोगी, कोइ राजा कर पूत॥ ११ ॥
सुनि सो बात रानी रथ चढ़ी। कहँ अस जोगी देखौं मढ़ी॥
लेइ सँग सखी कीन्ह तहँ फेरा। जोगिन्ह आहि अपछरन्ह घेरा॥
नयन चकोर पेमपद भरे। भइ सुदिस्टि जोगी सहुँ ढरे॥
जोगी दिस्टि दिस्टि सौं लीन्हा। नैन रापि नैनहिं जिउ दीन्हा॥
जेहि मद चढ़ा परा तेहि पाले। सुधि न रही ओहि एक पियाले॥
परा माति गोरख कर चेला। जिउ तन छाँड़ि सरग कहँ खेला॥
किंगरी गहे जो हुत बैरागी। मरतिहुँ बार उहै धुनि लागी॥
जेहि धंधा जाकर मन लागै, सपनेहु सूझ सो धंध।
तेहि कारन तपसी तप साधहिं, करहिं पेम मन बंध॥ १२ ॥
पदमावति जस सुना बखानू। सहस करा देखेसि तस भानू॥
मेलेसि चंदन मकु खिन जागा। अधिकौ सूत, सीर तन लागा॥
तब चंदन आखर हिय लिखे। भीख लेइ तुइ जोग न सिखे॥


वाणी। ओझा = उपाध्याय, पुजारी (प्रा० उवज्झाओ)। पूरि = पूरी। गोझा = एक पकवान, पिराक। खोवा = खोव, खोवे। धर = शरीर। (११) तंत = तत्व। दसएँ लछन = योगियों के बत्तीस लक्षणों में दसवाँ लक्षण 'सत्य' है। पिंगला = पिंगला नाड़ी साधने के लिये अथवा पिंगला नाम की अपनी रानी के कारण। कजरी आरन = कदली वन। (१२) कचोर = कटोरा। जोगी सहुँ = जोगी के सामने, जोगी की ओर। नैन रोपि...दीन्हा = आँखों में ही पद्मावती के नेत्रों के मद को लेकर बेसुध हो गया। (१३) मकु = कदाचित्। सूत = सोया। सीर = शीतल,ठंढा (प्रा० सोयड,सीयर)। आाखर = अक्षर।