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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२५७

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वसंत खंड


किछ पुनि जूक लागि तुम रामा। रावन सौं होइहि सँगरामा॥
चाँद सुरुज सौं होइ वियाहू| वारि विधंसब बेधब राहू॥
जस ऊषा कहूँ अनिरुध मिला। मेटि न जाइ लिखा पुरबिला॥
सुख सोहाग जो तुम्ह कहँ, पान फूल रस भोग।
आजू काल्हि भा चाहे, अस सपने क सँजोग॥१६॥


 

(१६) जूझ...रामा = हे बाला! तुम्हारे लिये राम कुछ लड़ेंगे (राम = रत्नसेन, रावण = गंधर्वसेन)। बारि विधंसव = संभोग के समय शृंगार के अस्तव्यस्त होने का संकेत। बगीचा। पुरबिला = पूर्व जन्म का। संजोग फल या व्यवस्था।