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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२६१

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(२२) पार्वती महेश खंड

ततखन पहुँचे आइ महेसू। बाहन बैल, कुस्टि कर भेसू॥
काथरि कया हड़ावरि बाँधे। मुंड माल औ हत्या काँधे॥
सेसनाग जाके कँठमाला। तनु भभूति, हस्ती कर छाला॥
पहुँची रुद्रकवँल कै गटा। ससि माथे औ सुरसरि जटा॥
चँवर घंट औ डँवरू हाथा। गौरा पारबती धनि साथा॥
औ हनुवंत वीर सँग आवा। धरे भेस बाँदर जस छावा॥
अवतहि कहेन्हि न लावहु आगी। तेहि कै सपथ जरहु जेहि लागी॥
की तप करै न पारेहु, की रे नसाएहु जोग? ।
जियत जीउ कस काढ़हु? कहहु सो मोहि बियोग॥ १ ॥
कहेसि मोहि बातन्ह बिलमावा। हत्या केरि न डर तोहि आवा॥
जरै देहु, दुख जरौं अपारा। निस्तर पाइ जाउँ एक बारा॥
जस भरथरी लागि पिंगला। मो कहँ पदमावति सिंघला॥
मैं पुनि तजा राज औ भोगू। सुनि सो नावँ लीन्ह तप जोगू॥
एहि मढ़ सेएउँ आइ निरासा। गइ सो पूजि, मन पूजि न आसा॥
मैं यह जिउ डाढ़े पर दाधा। आधा निकसि रहा, घट आधा॥
जा अधजर सो बिलँब न लावा। करत बिलंब बहुत दुख पावा॥
एतना बोल कहत मुख, उठी बिरह कै आगि।
जौं महेस न बुझावत, जाति सकल जग लागि॥ २ ॥
पारबती मन उपना चाऊ। देखौं कुँवर केर सत भाऊ॥
ओहि एहि बीच कि पेमहि पूजा। तन मन एक कि मारग दूजा॥
भइ सुरूप जानहुँ अपछरा। बिहँसि कुँवर कर आँचर धरा॥
सुनहु कुँवर मोसौं एक बाता। जस मोहि रंग न औरहि राता॥
औ विधि रूप दीन्ह है तोकाँ। उठा सो सबद जाइ सिवलोका॥
तब हौं तोपहँ इंद्र पठाई। गइ पदमिनि, तैं अछरी पाई॥
अब तजु जरन, मरन, तप जोगू। मोसौं मानु जनम भरि भोगू॥


(१) कुस्टि = कुष्टी, कोढ़ी। हड़ावरि = अस्थि की माला। हत्या = मुत्य, काल? रुद्रकँवल = रुद्राक्ष। गटा = गट्टा, गोल दाना। (२) निस्तर = निस्तार, छुटकारा। (३) ओहि एहि बीच...नजा = उसमें (पद्मा वती में) और इसमें कुछ अंतर रह गया है कि वह अंतर प्रेम से भर गया है और दोनों अभिन्न हो गए हैं। (४) राता = ललित, सुंदर। तोकाँ = तुमको (= तोकहँ)।