पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२७०

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८८
पदमावत

८८ भा बिसँभार देखि के नैना । सखिन्ह लाज का बोलॉ बैना ? खेलहि मिस में चंदन घाला। मऊ जागति ताँ देखें जयमाला तब, न जागा, गा तू सोई। जागे भेंट, न सोए होई अब ज सूर होइ चढ़े अकासा। जौं जिउ देइ त आाव पासा तौ लगि भुति न लेइ सबरावन सिय जब साथ कौन भरोसे अब कहीं ? जीड हाथ I१ अब जौ सूर गगन चढ़ि जावे । राहु होझ तौ ससि कहूँ पार्वे ॥ बहुतन्ह ऐस जीउ पर खेला। तू जोगी कित प्राहि अकेला बिक्रम वैसा पेम के बारा । सपनावति कm गएडं पतारा मधू पाछ धावति लागी । गगनपूर होइगा बैरागी राजकुंवर कंचनपुर गयऊ। मिरिगावति करें जोगी भएऊ जोग। मध मालति कर कीन्ह वियोग प्रेमावति कहें सुरपुर साधा। उ लागि अनिरुध बर बांधा - साध १२ ही रानी पदमावति, सात सरग पर बास हाथ चढ़ों में तेहिके, प्रथम अपनास II१७ हों पुति इहाँ ऐस तोहि राती। आधी भेंट पिरीतम पाती तहें जौ प्रीति निबाहै अटा। भौंर न देख केत कर काँटा होइ पतंग प्रधरन्तु गह दीया । लेखि समूद धृति होइ मरजीया रातु रंग जिमि दीपक बाती। नैन लाउ होइ सीप सेवाती पुकारु पियासा। पीठ न पानि सेवाति के नासा सारस कर जस विद्युरा जोरा। नैन होहि जस चंद चकोरा होहि चकोर दिस्टि ससि पाँहा । श्री रबि होइ कंवल दल महा। महें ऐसे होऊँ तोहि कहें, कहि तो ओोर निबाहु रोहु बेधि अरजुन होइ, जीतु दुरपदी व्ाह I१८ राजा इहां एस झा। भा जरि बिरह छार कर रा नैन लाइ सो गएंड बिमोही। भा बिन जिउ ,दीन्हेसि औोही। कहाँ बंगला सुखमन नारी । सुनि समाधि लागि गई तारी द समुद्र जैस होइ मेरा । गा हेराइ प्रस मिले न हेरा रंगति पान मिला जस होई । भापतेिं खोई रहा होइ सोई सुऐ जाइ जब देखा तासू। नैन रकत भरि झाए ग्राँसू कनक पानि - सोने का पानी!क्सिंभार = सुध ला मकु = कदाचित् । जागे में होई जागने से भेंट होता है, सोने से नहीं । (१७) अपनास = अपना नाश : (१८) निबाहै याँटा = निबाह सकता केत = केतकी । म्हूँ। ओोर निबाहू ने प्रीति को अंत तक निबाह। (१९) कूरा = र। पिंगला = दक्षिण नाड़ी। सुखमन = सुषुम्नामध्य नाड़ी हैं। मुनि समाधि = शून्य समाधि तारी = नाटक, टकटकी मह, में भर्ती