भा बिसँभार देखि कै नैना। सखिन्ह लाज का बोलौं बैना? ॥
खेलहि मिस मैं चंदन घाला। मकु जागसि तौं देउँ जयमाला॥
तबहुँ न जागा, गा तू सोई। जागे भेंट, न सोए होई॥
अब जौं सूर होइ चढ़ै अकासा। जौं जिउ देइ त आवै पासा॥
तौ लगि भुगुति न लेइ सब, रावन सिय जब साथ।
कौन भरोसे अब कहौं? जीउ पराए हाथ॥ १६ ॥
अब जौ सूर गगन चढ़ि आवै। राहु होइ तौ ससि कहँ पावै॥
बहुतन्ह ऐस जीउ पर खेला। तू जोगी कित आहि अकेला॥
बिक्रम धँसा पेम के बारा। सपनावति कहँ गएउ पतारा॥
मधू पाछ मुगुधावति लागी। गगनपूर होइगा बैरागी॥
राजकुँवर कंचनपुर गयऊ। मिरिगावति कहँ जोगी भएऊ॥
साध कुँवर खंडावत जोगू। मधु मालति कर कीन्ह वियोगू॥
प्रेमावति कहँ सुरपुर साधा। उषा लागि अनिरुध बर बाँधा॥
हौ रानी पदमावति, सात सरग पर बास।
हाथ चढ़ौं मैं तेहिके, प्रथम करै अपनास॥ १७ ॥
हौं पुनि इहाँ ऐस तोहि राती। आधी भेंट पिरीतम पाती॥
तहुँ जौ प्रीति निबाहै आँटा। भौंर न देख केत कर काँटा॥
होइ पतंग अधरन्हु गहु दीया। लेखि समुद धँसि होइ मरजीया॥
रातु रंग जिमि दीपक बाती। नैन लाउ होइ सीप सेवाती॥
चातक होइ पुकारु पियासा। पीउ न पानि सेवाति कै आसा॥
सारस कर जस बिछुरा जोरा। नैन होहि जस चंद चकोरा॥
होहि चकोर दिस्टि ससि पाँहा। औ रबि होइ कँवल दल माँह॥
महुँ ऐसै होउँ तोहि कहँ, कहि तो ओर निबाहु।
रोहु बेधि अरजुन होइ, जीतु दुरपदी ब्याहु॥ १८ ॥
राजा इहाँ ऐस तप झूरा। भा जरि बिरह छार कर कूरा॥
नैन लाइ सो गएउ बिमोही। भा बिनु जिउ, जिउ दीन्हेसि ओही॥
कहाँ पिंगला सुखमन नारी। सूनि समाधि लागि गइ तारी॥
बूँद समुद्र जैस होइ मेरा। गा हेराइ अस मिलै न हेरा॥
रंगहि पान मिला जस होई। आपहि खोइ रहा होइ सोई॥
सुऐ जाइ जब देखा तासू। नैन रकत भरि आए आँसू॥
कनक पानि = सोने का पानी। बिसँभार = बेसुध। धाला = डाला। लगाया। मकु = कदाचित्। जागे भेंट...होई = जागने से भेंट होता है, सोने से नहीं। (१७) अपनास = अपना नाश। (१८) निबाहै आँटा = निबाह सकता है। केत = केतकी। मुहुँ = महूँ, मैं भी। ओर निबाहू = प्रीति को अंत तक निबाह। (१९) कूरा = ढेर। पिंगला = दक्षिण नाड़ी। सुखमन = सुषुम्ना, मध्य नाड़ी। सूनि समाधि = शून्य समाधि। तारी = त्राटक, टकटकी।