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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२८२

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पदमावत

सूरूज जेहिकै तपै रसोई। नितिहिं बसंदर धोती धोई॥
सूक सुमंता, ससि मसिआरा। पौन करै निति बार बोहारा॥
जमहिं लाइकै पाटी बाँधा। रहा न दूसर सपने काँधा॥
जो अस वज्र टरै नहिं टारा। सोउ मुवा दुइ तपसी मारा॥
नाती पूत कोटि दस अहा। रोवनहार न कोई रहा॥
ओछ जानि कै काहुहि, जिनि कोई गरब करेइ।
ओछे पर जो दैउ है, जीति पत्र तेइ देइ॥ १० ॥
अब जो भाँट उहाँ हुत आगे। बिनै उठा राजहि रिस लागे॥
भाँट अहै संकर कै कला। राजा सहुँ राखै अरगला॥
भाँट मीचु पै आपु न दीसा। ता कहँ कौन करै अस रीसा? ॥
भएउ रजायसु गंध्रबसेनी। काहे मीचु के चढै नसेनी? ॥
कहा आनि बानी अस पढै? । करसि न बुद्धि भेंट जेहि करे॥
जाति भाँट कित औगुन लावसि। बाएँ हाथ राज बरम्हावसि॥
भाँट नाँव का मारौ जीवा? । अबहूँ बोल नाइ कै गीवा॥
तू रे भाँट, ए जोगी, तोहि एहि काहे क संग? ।
काह छरे अस पावा, काह भएउ चितभंग॥ ११ ॥
जौं सत पूछसि गँध्रब राजा। सत पै कहौं परै नहिं गाजा॥
भाँटहि काह मीचु सौं डरना। हाथ कटार, पेट हनि मरना॥
जंबूदीप चित्तउर देसा। चित्नसेन बड़ तहाँ नरेसा॥
रतनसेन यह ताकर बेटा। कुल चौहान जाइ नहिं मेटा॥
खाँड़ै अचल सुमेरु पहारा॥ टरै न जौं लागै संसारा॥
दान सुमेरु देत नहिं खाँगा। जो ओहि माँग न औरहि माँगा॥
दाहिन हाथ उठाएउँ ताही। और को अस बरम्हावौं जाही? ॥
नाँव महापातर मोहिं, तेहिक भिखारी ढीठ।
जौं खरि बात कहे रिस लागै, कहै बसीठ॥ १२ ॥
ततखन पुनि महेस मन लाजा। भाँट करा होइ बिनवा राजा॥
गंध्रबसेन! तू राजा महा। हौं महेस मूरति, सुनु कहा॥


तपै = पकाता (था)। सूक = शुक्र। सुमंता = मंत्री। मसिआरा = मसियार, मशालची। बार = द्वार। बोहारा करै = झाड़ देता था। सपने काँधा = जिसे उसने स्वप्न में कुछ समझा। काँधा = माना, स्वीकार किया। ओछ = छोटा। (११) सहुँ = सामने। अरगला = (सं ० अर्गल) रोक, टेक, अड़। नसेनी = सीढ़ी। भेंट जेहि कढ़ै = जिससे इनाम निकले। बरम्हावसि = आशीर्वाद देता है। काह छरे अस पावा = ऐसा छल करने से तू क्या पाता है? चितभंग = विक्षेप। (१२) परे नहिं गाजा = चाहे बज्र ही न पड़े। महापातर = महापात्र (पहले भाँटों की पदवी होती थी)। (१३) भाँट करा = भाँट के समान, भाँट की कला धारण करके।