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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२८४

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पदमावत

हस्ति क जूह आय अगसारी। हनुवँत तबै लँगूर पसारी॥
जैसे सेन बीच रन आई। सबै लपेटि लंगूर चलाई॥
बहुतक टूटि भए नौ खंडा। बहुतक जाइ परे बरम्हंडा॥
बहुतक भँवत सोह अँतरीखा। रहे जो लाख भए ते लीखा॥
बहुतक परे समुद महँ, परत न पावा खोज।
जहाँ गरब तहँ पीरा, जहाँ हँसी तहँ रोज॥ १६ ॥
पुनि आगे का देखै राजा। ईसर केर घंट रन बाजा॥
सुना संख जो बिस्नू पूरा। आगे हनुवँत केर लँगूरा॥
लीन्हे फिरहिं लोक बरम्हंडा। सरग पतार लाइ मृदमंडा॥
बलि, बासुकि औ इंद्र नरिंदू। राहु,नखत, सूरुज औ चंदू॥
जावत दानव राच्छस पुरे। आठौं बज्र आइ रन जुरे॥
जेहि कर गरब करत हुत राजा। सो सब फिरि बैरी हुइ साजा॥
जहवाँ महादेव रन खड़ा। सीस नाइ नृप पायँन्ह परा॥
केहि कारन रिस कीजिये? हौं सेवक औ चेर॥
जेहि चाहिए तेहि दीजिय, बारि गोसाई केर॥ १७ ॥
पुनि महेस अब कीन्ह बसीटी। पहिले करुइ, सोइ अब मीठी॥
तूं गंध्रब राजा जग पूजा। गुन चौदह,सिख देइ को दूजा॥
हीरामन जो तुम्हार परेवा। गा चितउर औ कीन्हेसि सेवा॥
तेहि बोलाइ पूछहु वह देसू। दहुँ जोगी, की तहाँ नरेसू॥
हमरे कहत न जौं तुम्ह मानहु। जो वह कहै सोइ परवानहु॥
जहाँ बारि, बर आवा ओका। करहिं बियाह धरम बड़ ताका॥
जो पहिले मन मानि न काँधै। परख रतन गाँठि तब बाँधे॥
रतन छपाए ना छपै, पारिख होइ सो परीख।
घालि कसौटी दीजिए कनक कचोरी भीख॥ १८ ॥
राजै सब हीरामन सुना। गएउ रोस, हिरदय महँ गुना॥
अज्ञा भई बोलावहु सोई। पंडित हुँते धोख नहिं होई॥
एकहि कहत सहस्त्रक धाए। हीरामनहिं लेइ आए॥
खोला आगे आनि मँजूसा। मिला निकसि बहु दिनकर रूसा॥
अस्तुति करत मिला बहु भाँँती। राजै सुना हिये भइ साँती॥
जानहुँ जरत आगि जल परा। होइ फुलवार रहस हिय भरा॥


भँवत = चक्कर खाते हए। अँतरीख = अंतरिक्ष, आकाश। लीखा = लिख्या, एक मान जो पोस्ते के दाने के बराबर माना जाता है। खोज = पता, निशान। रोज = रोदन, रोना। (१७) ईसर = महादेव। मृतमंडा = धूल से छा गया। फिरि = बिमुख होकर। बारि = कन्या। (१८) बसीठी = दूत कर्म। पहिले करुइ = जो पहले कड़वी थी। परवानहु प्रमाण मानो। काँधै = अँगीकार करता है, स्वीकार करता है। परीख = परखता है। (१९) रूसा = रुष्ट। साँती = शांति। फुलवार = प्रफुल्ल। रहस = आनंद।