सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

(२६) रत्नसेन पदमावती विवाह खंड

लगन धरा औ रचा बियाहु। सिंघल नेवत फिरा सब काहू॥
बाजन बाजे कोटि पचासा। भा अनंद सगरौं कैलासा॥
जेहि दिन कहँ निति देव मनाया। सोइ दिसव पदमावति पावा॥
चाँद सूरुज मनि माथे भागू। औ गाँवहि सब नखत सोहागू॥
रचि रचि मानिक माँड़व छावा। औ भुइँ रात बिछाव निछावा॥
चंदन खाँभ रचे बहु भाँती। मानिक दिया बरहिं दिन राती॥
घर घर बंदन रचे दुवारा। जावत नगर गीत झनकारा॥
हाट बाट सब सिंघल, जहँ देखहु तहँ रात।
धनि रानी पदमावति, जेहिकै ऐसि बरात॥ १ ॥
रतनसेन कहँ कापड़ आए। हीरा मोति पदारथ लाए॥
कुँवर सहस दस आइ सभागे। बिनय करहिं राजा सँग लागे॥
जाहि लागि तन साधेहु जोगू। लेहु राज औ मानहु भोगू॥
मंजन करहु, भभूत उतारहु। करि अस्नान चित्न सब सारहु॥
काढ़हु मुद्रा फटिक अभाऊ। पहिरहु कुंडल कनक जराऊ॥
छोरहु जटा, फुलायल लेहू। झारहु केस, मकुट सिर देहू॥
काढ़हु कंथा चिरकुट लावा। पहिरहु राता दंगल सोहावा॥
पाँवरि तजहु, देहु पग,पौरि जो बाँक तुखार।
बाँधि मौर, सिर छत्र देइ, वेगि होहु असवार॥ २ ॥
साजा राजा, बाजन बाजे। मदन सहाय दुवो दर गाजै॥
औ राता सोने रथ साजा। भए बरात गोहने सब राजा॥
बाजत गाजत भा असवारा। सब सिंघल नइ कीन्ह जोहारा॥
चहुँ दिसि मसियर नखत तराईं। सूरुज चढ़ा चाँद के ताई॥
सब दिन तपे जैस हिय माहाँ। तैसि राति पाई सुख छाहाँ॥
ऊपर रात छत्र तस छावा। इंद्रलोक सब देखै आवा॥
आजु इंद्र अछरी सौं मिला। सब कबिलास होहि सोहिला॥
धरती सरग चहूँ दिसि, पूरि रहे मसियार।
बाजत आवै मंदिर जहँ, होइ मंगलाचार॥ ३ ॥


(१) सोहागू = सौभाग्य या विवाह के गीत। रात = लाल। बिछाव = बिछावन। बंदन = बंदनवार। (२) लाए = लगाए हुए। चित्न सारहु = चंदन केसर की खौर बनाओ। अभाउ = न भानेवाले, न सोहनेवाले। फुला- यल = फूलेल। दगल = दगला, ढीला अँगरखा। पाँवरि = खड़ाऊँ। (३) दर = दल। गोहने साथ में । नइ झुककर। मसियर = मशाल। सोहिला = सोहला या सोहर नाम के गीत। मसियार = मशाल।