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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२८९

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रत्नसेन पदमावती विवाह खंड

तुम जानहु आवै पिउ साजा। यह सब सिर पर धम धम बाजा॥
जेते बराती औ असवारा। आए सबै चलावनहारा॥
सो आगम हौं देखति झँखी। रहन न आपन देखौं, सखी! ॥
होइ बियाह पुनि होइहि गवना। गवनब तहाँ बहुरि नहिं अवना॥
अब यह मिलन कहाँ होइ? परा बिछोहा टूटि।
तैसि गाँठि पिउ जोरब जनम न होइहि छूटि॥ ७ ॥
आइ बजावति बैठि बराता। पान, फूल, सेंदुर सब राता॥
जहँ सोने कर चित्तर सारी। लेइ बरात सब तहाँ उतारी॥
माँझ सिंघासन पाट सवारा। दुलह आनि तहाँ बैसारा॥
कनक खंभ लागें चहुँ पाँती। मानिक दिया बरहिं दिन राती॥
भएउ अचल ध्रुव जोगेि पखेरू। फूलि बैठि थिर जैस सुमेरू॥
आजु दैउ हौं कीन्ह सभागा। जत दुख कीन्ह नेग सब लागा॥
आजु सूर ससि के घर आवा। ससि सूरहि जनु होइ मेरावा॥
आजु इंद्र होइ आएउँ सजि बरात कबिलास।
आजु मिली मोहि अपछरा, पूजी मन के आस॥ ८ ॥
होइ लाग जेवनार पसारा। कनकपत्र पसरे पनवारा॥
सोन थार मनि मानिक जरे। राय रंक के आगे धरे॥
रतन जड़ाऊ खोरा खोरी। जन जन आगे दस दस जोरी॥
गडुवन हीर पदारथ लागे। देखि बिमोहे पुरष सभागे॥
जानहु नखत करहिं उजियारा। छपि गए दीपक औ मसियारा॥
गइ मिलि चाँद सुरुज कै करा। भा उदोत तैसे निरमरा॥
जेहि मानुष कहँ जोति न होती। तेहि भइ जोति देखि वह जोती।
पाँति पाँति सब बैठे, भाँति भाँति जेवनार ।
कनकपत्र दोनन्ह तर, कनकपत्र पनवार॥ ९ ॥
पहिले भात परोसे आना। जनहुँ सुबास कपूर बसाना॥
झालर माँड़े आए पोई। देखत उजर पाग जस धोई॥
लुचुई और सोहारी धरी। एक तौ ताती औ सुठि कोंवरी॥
खँडरा बचका औ डुभकौरी। बरी एकोतर सौ, कोहँड़ौरी॥


(८) चित्तर सारी = चित्रशाला। जोगि पखेरू = पक्षी के समान एक स्थान पर जमकर न रहनेवाला योगी। फूलि = आनंद से प्रफुल्ल होकर। नेग लागा = (मुहा०) सार्थक हुआा, सफल हुआ, होने लगा। (९) पनवार = पत्तल। खोरा = कटारा। मसियार = मशाल। करा = कला। (१०) झालर = एक प्रकार का पकवान, झलरा। माँड़े = एक प्रकार की चपाती। पाग = पागड़ी। लुचुई = मैदे की महीन पूरी। सोहारी = पूरी। कोंवरी = मुलायम। खँडरा = फेंटे हुए बेसन के भाप पर चौखूटे टुकड़े जो रसे या दही में भिगोए जाते हैं; कतरा रसाज। बचका = बेसन और मैदे को एक में फेंटकर जलेवे के समान टपका घी में छानते हैं, फिर दूध में भिगोकर रख देते हैं। एकोतर सौ = एकोत्तर शत, एक सौ एक। कोहँड़ौरी = पेठे की बरी।