पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२९०

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पदमावत

"१० ८ पुनि सैंधाने बसाँधे। दूध दही के मुरंडा बाँधे ऑौ छप्पन परकार जो जाए। नहि न कबहूँ खाए ।। अस देख पुनि जाउरि पछियाउर थाई। घिति के बनी* खड क मिठाई ॥ जंवत अधिक सुवासित, मुंह महें परत बिलाइ। सहस स्वाद पाव, एक सो कौर जो खाइ 1१ जैवन ऑावा, बीन न बाजा। बिन बाजन नहि जेंने राजा ॥ सब कुंवरन्तु पुनि बैंचा हा। टार्लर व तौऊंचे साथ बिनय करहि पंडित विद्वाना। काहे नहि जेवहि जजमाना ? ॥ यह कबिलास इंद्र कर बासू । जहाँ न अन्न न मारि माँसू ॥ पान फूल आसो । तुम्ह रसोई सब कोई कारन यह को भूखतो ग्रस्त । , है सुखा। धूपतौ सीआर नीबी रूखा । जनु नींद, तौ सेज समेती। छटहूं मुझे जतु का चतुराई एती ? कौन काज तेहि कारन, बिकल भएड जजमान ॥ होइ रजायपु सोईबेगि देहि मान ॥ ११ , हम । तुम पंडित जानलु सव भेदू । पहिले नाद भएछ तब बेहूं । आादि पिता जो विधि अवतारा। नाद संग जिउ ज्ञान सँचारा i। सो तुम बरजि नोक का कोन्हा। वन संग भोग विधि दीन्हा । नैनरसननासिक, दुइ नवना। इन चारह सेंग जैव बना । जैवन देखा नैन सिराने। जोभर्ताि स्वाद भगति रस जाने ॥ नासिक पाई। काह करत पहुनाई । सर्वे वासना अवनहि ?. तेहि कर होइ नाद सों पोखा ।ज्व चारिह कर होइ संतोखा । औ सो सुनहि सबद एक, जाहि पा कि सूफ़ि । नाद सुनै कहूँबरजेहु तुम का बूशि 1 १ राजा ! उतर सुनहु सव सोई। महि डोलै जो बेद न होई ॥ नाद, वेद, ‘मद, पैड जो चा। काया मां ते, लेह विचारी ॥ नाद, हिगे मद उपनै काया । जहूँ मद तहाँ पैड़ नहि छाया ॥ होइ जूझा सो करे। जो न बेद अकुस सिर ध ॥ उनमद जोगी होइ नाद सो सुना। जेहि सुनि काय ज चौगुना ॥ कथा जो परम संत मन लावा। न भावा धूम माति, सुनि और ॥ सैंधाने = अचार। बसीधे = सुगंधित । मुरड = औौर गुड़ लडड। जाउरि = खीर । पछियाउरि एक प्रकार की सिखरन या शरबत । भुने गेहूं के लड्डू, यहाँ (११) भूख.. खा यदि भूख तो रूखा सूखा । है भो मानो अमृत है नाद = शब्बन ह्य, ग्रनाह नाद । (१२) सिरान ठंडे हए। पोखा = पोषण । (१३) मद = ने मद। वैड = ईश्वर को चोर मार्ग, का ले जानेवाला मोक्ष मार्ग । (बौद्धों का चौथा सत्य मार्ग । ' है । के यहाँ से उन्हीं वयान योगियों के बीच होता हुआ शायद यह सूफियों तक पहुँचता है ।) उनमद=उन्मत्त । ।