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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२९०

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पदमावत

पुनि सँधाने आए बसाँधे। दूध दही के मुरंडा बाँधे॥
औ छप्पन परकार जो जाए। नहिं अस देख, न कबहूँ खाए॥
पुनि जाउरि पछियाउर आई। घिरित खाँड़ कै बनी मिठाई॥
जेंवत अधिक सुबासित, मुँह महँ परत बिलाइ।
सहस स्वाद सो पावै, एक कौर जो खाइ॥ १० ॥
जेंवन आवा, बीन न बाजा। बिनु बाजन नहिं जेंवै राजा॥
सब कुँवरन्ह पुनि खैंचा हाथू। ठाकुर जेंव तौ जेंवै साथू॥
बिनय करहिं पंडित विद्वाना। काहे नहिं जेवहिं जजमाना? ॥
यह कबिलास इंद्र कर बासू। जहाँ न अन्न न माछरि माँसू॥
पान फूल आसी सब कोई। तुम्ह कारन यह कीन्ह रसोई॥
भूख, तौ जनु अमृत है सुखा। धूप, तौ सीअर नीबी रूखा॥
नींद, तौ भुइँ जनु सेज सपेती। छाँटहूँ का चतुराई एती? ॥
कौन काज तेहि कारन, बिकल भएउ जजमान॥
होइ रजायसु सोई, बेगि देहि हम आन॥ ११ ॥
तुम पंडित जानहु सब भेदू। पहिले नाद भएउ तब बेदू॥
आदि पिता जो विधि अवतारा। नाद संग जिउ ज्ञान सँचारा॥
सो तुम बरजि नीक का कीन्हा। जेंवन संग भोग बिधि दीन्हा॥
नैन, रसन, नासिक, दुइ स्त्रवना। इन चारहु सँग जेंवै अवना॥
जेंवन देखा नैन सिराने। जोभहिं स्वाद भुगुति रस जाने॥
नासिक सबैं बासना पाई। स्त्रवनहिं काह करत पहुनाई? ॥
तेहि कर होइ नाद सौं पोखा। तव चारिहु कर होइ सँतोखा॥
औ सो सुनहिं सबद एक, जाहि परा किछु सूझि।
पंडित! नाद सुनै कहँ, बरजेहु तुम का बूझि॥ १२ ॥
राजा! उतर सुनहु सब सोई। महि डोलै जौ बेद न होई॥
नाद, वेद, मद, पैड़ जो चारी। काया महँ ते, लेहु बिचारी॥
नाद, हिये मद उपनै काया। जहँ मद तहाँ पैड़ नहिं छाया॥
होइ उनमद जूझा सो करै। जो न बेद आँकुस सिर धरै॥
जोगी होइ नाद सो सुना। जेहि सुनि काय जरै चौगुना॥
कथा जो परम तंत मन लावा। धूम माति, सुनि और न भावा॥


सँधाने = अचार। बसाँधे = सुगंधित। मुरंड = भुने गेहूँ और गुड़ के लड्डू, यहाँ लड्डू। जाउरि = खीर। पछियाउरि = एक प्रकार की सिखरन या शरबत।

(११) भूख...सूखा = यदि भूख तो रूखा सूखा मानो अमृत है। नाद = शब्बनब्रह्म, अनाहत नाद। (१२) सिरान = ठंढे हुए। पोखा = पोषण। (१३) मद = प्रेममद। पैंड़ = ईश्वर की ओर ले जानेवाला मार्ग, मोक्ष का मार्ग। (बौद्धों का चौथा सत्य 'मार्ग' है। उन्हीं के यहाँ से वज्रयान योगियों के बीच होता हुआ शायद यह सूफियों तक पहुँचता है।) उनमद = उन्मत्त।