पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२९१

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रत्नसेन पदमावती विवाह खड १० 9 गए जो धरमपंथ होइ राजा । तिनकर पुनि जो सुने तो छाजा ॥ जसमद पिए घूम कोइ, नाद सुनै से घूम । तेहितें बरजे नीचे है, चढ़े रहस के दुम 1 १३ ॥ भड़ जेवनार, फिरा खंड़वानीफिरा अरगजा कुर्राह पानी फिरा पान, बहुरा सब कोई। राग बियाहचार सब होई ॥ माँड़ी सोन क गगन सँवारा। बंदनवार लाग सब बारा । साजा पाटा खत्न के छाँहा। रतन चौक पूरा तेहि माहाँ । कंचन कलस नीर भरि धरा । इंद्र पास आानी अपछरा ॥ गाँठि दुलह दुलहिन के जोरी। दु जगत जो जाइ न छोरी । बंद पड़े पंडित तेहि ठाऊँतुला राशि । कन्या लेइ नाऊँ। चाँद सुरुज दुआं निरमल, दुनौ सँजोग अनूप सुरुज चांद सीं भूला, चाँद सुरुज के रूप ॥ १४ It दुनी नाँव लै गावह बारा कह सो पदमिनि मंगलचारा ॥ चाँद के हाथ दीन्ह जयमाला । चाँद आानि सूरज गिउ घाला ॥ सूरुज लीन्ह चाँद पहिराई । हार नखत तरइन्ह स्यों पुनि धनि भरि अंजुलि जल लीन्हा। जोबन जनम कंत कह दीन्हा॥ कंत लीन्ह, दीन्हा धनि हाथा। जोरी गठिठे दु एक साथा । फिरह दुौ सत फेरघु के। सात फेर गाँठि सो एके ॥ भइ भाँवरि, कीन्ह । नेवछावरि, राज चार सब दायज कहाँ कहाँ लगि ? लिखि न जाइ जत दीन्ह 1 १५ ॥ ‘रतनसेन जब दायज पावा। गंध्रबसेन आाइ सिर नावा। मानस चित्त आान किछ कोई। करें गोसाईं सोझ पे होई ॥ अब तुम्ह सिंघलदीप गोसाईं। हम सेवक अहहीं सेवकाई ॥ जंबदीप हरि का ? । सिंघलदीप करह अब राज रतनसेन बिनवा कर जोरी। अस्तुति जोग जीभ कहें मोरी । तुम्ह गोसाई जेइ छार छुड़ाई। मानुस अब दीन्हि बड़ाई । जौ तुम्ह दीन्ह तौ पावा जिवन जनम सुखभोग । नातरु खेह पायें , हों जोगी केहि जोग 1 १६ ॥ तिनकर पुनि..छाजा = राजधर्म में रत जो राजा हो गए हैं उनका पुण्य तू सुने तो शोभा देता है । चढ़े.दुम = मद चढ़ने पर उमंग में आकर झूमने लगता है । (१४) खंड़वानी ।' (१५) हार नखत..सो ताई = हार = शरबत क्या पाया मानो चंद्रमा के साथ तारों को भो पाया। त्यों= साथ। ठे के गाँठ को दृढ़ कर, आान गाँठि घुटि जाय त्यों मान गाँठि छुटि जाय ।--बिहारी । (१६) ।नु = लाए। नातरु = नहीं तो ।