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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/२९९

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पदमावती रत्नसेन भेंट खंड

चाँदहि कहाँ जोति औ करा। सुरुज के जोति चाँद निरमरा॥
भौंर बास चंपा नहिं लेई। मालति जहाँ तहाँ जिउ देई॥
तुम्ह हुँत भएउँ पतँग कै करा। सिंघलदीप आइ उड़ि परा॥
सेएऊँ महादेव कर बारू। तजा अन्न, भा पवन अहारू॥
अस मैं प्रीति गाँठि हिय जोरी। कटै न काटे, छुटै न छोरी॥
सीतै भीखि रावनहिं दीन्हीं। तूं असि निठुर अँतरपट कीन्हीं॥
रंग तुम्हारेहि रातेउँ, चढेउँ गगन होइ सूर।
जहँ ससि सीतल तहँ तपौं, मन हींछा, धनि! पूर॥ १८ ॥
जोगि भिखारि! करसि बहु बाता। कहसि रंग, देखौं नहिं राता॥
कापर रँगे रंग नहिं होई। उपजै औटि रंग भल सोई॥
चाँद के रंग सुरुज जस राता। देखै जगत साँझ परभाता॥
दगधि बिरह निति होइ अँगारा। ओही आँच धिकै संसारा॥
जो मजीठ औटै बहु आँचा। सो रँग जनम न डोलै राँचा॥
जरैं बिरह जस दीपक बाती। भीतर जरै, उपर होइ राती॥
जरि परास होइ कोइल भेसू। तब फूलै राता होइ टेसू॥
पान, सुपारी, खैर जिमि मेरइ करै चकचून।
तौ लगि रंग न राँचै जौ लगि होई न चुन॥ १९ ॥
का धनि! पान रंग, का चूना। जेहि तन नेह दाध तेहि दूना॥
हौं तुम्ह नेह पियर भा पानू। पेड़ी हुँत सोनरास बखानू॥
सुनि तुम्हार संसार बड़ौना। जोग लीन्ह, तन कीन्ह गड़ौना॥
करहिं जो किंगरी लेइ बैरागी। नौती होइ बिरह के आगी॥
फेरि फेरि तन कीन्ह भुँजौना। औटि रकत रँग हिरदय औना॥
सूखि सोपारी भा मन मारा। सिरहिं सरौता करवत सारा॥
हाड़ चून भा, बिरहँहि दहा। जानै सोइ जो दाध इमि सहा॥
सोई जान वह पीरा, जेहि दुख ऐस सरीर।
रकत पियासा होइ जो, का जानै पर पीर? ॥ २० ॥


करा = कला। तुम्ह हुँत = तुम्हारे लिये। पतँग कै करा = पतंग के रूप का। बारू = द्वार। (१९) देखैं...जगत पराभात = संध्या सबेरे जो ललाई दिखाई पड़ती है। धिकै = तपता है। मजीठ = साहित्य में पक्के राग या प्रेम को मंजिष्ठा राग कहते हैं। जनम न डोलै = जन्म भर नहीं दूर होता। चकचून करै = चूर्ण करै। चून = चूना पत्थर या कंकड़ जलाकर बनाया जाता है। (२०) पेड़ीहुँत = पेड़ी ही से, जो पान डाल या पेड़ों में ही पुराना होता है उसे भी पेड़ी ही कहते हैं। सोनरास = पका हुआ सफेद या पीला पान। बड़ौना (क) बड़ाई। (ख) एक जाति का पान। गड़ौना = एक प्रकार पान जो जमीन में गाड़कर पकाया जाता है। नौती = नूतन, ताजी। भुँजौना कीन्ह = भुना। औना = आाता है, आ सकता है।