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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३३३

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१५१
देशयात्रा खंड

दरब जो जानहिं आपना, भूलहिं गरब मनाहिं।
जौ रे उठाइ न लेइ सके, बोरि चले जल माहिं॥ ३ ॥
केवट एक बिभीषन केरा। आव मच्छ कर करत अहेरा॥
लंका कर राकस अति कारा। आवै चला होइ अँधियारा॥
पाँच मूड़, दस बाहीं ताही। दहि भा सावँ लंक जब दाही॥
धुआँ उठै मुख साँस सँघाता। निकसै आगि कहै जो बाता॥
फेंकरे मूँड़ चँवर जनु लाए:। निकसि दाँत मुँह बाहर आए॥
देह रीछ, कै रीछ डेराई। देखत दिस्टि धाइ जनु खाई॥
राते नैन नियर जौ आवा। देखि भयावन सब डर खावा॥
धरती पायँ सरग सिर, जनहु सहस्राब्राहु।
चाँद सूर और नखत महँ, अस देखा जस राहु॥ ४ ॥
बोहित बहे; न मानहिं खेवा। राजहिं देखि हँसा मन देवा॥
बहुतै दिनहिं बार भइ दूजी। अजगर केरि आइ भुख पूजी॥
यह पदमिनी विभीषन पावा। जानहु आजु अजोध्या छावा॥
जानहु रावन पाई सीता। लंका बसी राम कहँ जीता॥
मच्छ देखि जैसे बग आवा। टोइ टोइ भुइँ पावँ उठावा॥
आइ नियर होइ कीन्ह जोहारू। पूछा खेम कुसल बेवहारू॥
जो विस्वासघात कर देवा। बड़ बिसवास करै कै सेवा॥
कहाँ, मीत! तुम भूलेहु, औ आएहु केहि घाट?
हौं तुम्हार अस सेवक, लाइ देउँ तेहि बाट॥ ५ ॥
गाढ़ परे जिउ बाउर होई। जो भलि बात कहै भल सोई॥
राजै राकस नियर बोलावा। आगे कीन्ह, पंथ जनु पावा॥
करि बिस्वास राकसहि बोला। बोहित फेरु, जाइ नहिं डोला॥
तू खेवक खेवकन्ह उपराहीं। बोहित तीर लाउ गहि बाहीं॥
तोहिं ते तीर घाट जौ पावौं। नौगिरिही तोड़र पहिरावौं॥
कुंडल स्त्रवन देउँ पहिराई। महरा कै सौंपौं महराई॥
तस मैं तोरि पुरावौं आसा। रकसाई के रहै न बासा॥
राजै बीरा दीन्हा, नहि जाना बिसवास।
बग अपने भख कारन होइ मच्छ कर दास॥ ६ ॥


(४) संघाता = संग। फेंकरे = नंगे, बिना टोपी या पगड़ी के (अवधी)। चँवर जनु लाए = चँवर के से खड़े बाल लगाए हुए। चाँद, सुर, नखत = पद्मावती, राजा और सखियाँ। (५) देवा = देव, राक्षस (फारसी)। बग = बगला। लाइ देउँ तोंहि बाट = तुझे रास्ते पर लगा दूँ।

(६) नौगिरिही = कलाई में पहनने का, स्त्रियों का, एक गहना जो बहुत से दानों को गूँथकर बनाया जाता है। तोड़र = तोड़ा, कलाई में पहनने का गहना। महरा = मल्लाहों का सरदार। रकसाई = राक्षसपन। बासा = गंध। बिसवास = विश्वासघात।