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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३५८

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१७६
पदमावत

पदमावति जो झरोखै आई। निहकलंक ससि दीन्ह दिखाई॥
ततखन राघव दीन्ह असीसा। भएउ चकोर चंदमुख दीसा॥
पहिरे ससि नखतन्ह कै मारा। धरती सरग भएउ उजियारा॥
औ पहिरे कर कंचन जोरी। नग लागे जेहि महँ नौ कोरी॥
कँकन एक कर काढि पवारा। काढ़त हाड़ टूट औ मारा॥
जानहुँ चाँद टूट लेइ तारा। छुटी अकास काल के धारा॥
जानहु टूटि बीजु भुइँ परी। उटा चौधि राघव चित हरी॥

 परा आइ भुइँ कंकन, जगत भएउ उजियार।
राघव बिजुरी मारा, बिसँभर किछु न सँभार ॥ ६ ॥

 

 पदमावति हँसि दोन्ह झरोखा। जौ यह गुनी मरे, मोहिं दोखा॥
सबै सहेली देखै धाईं। 'चेतन चेतु' जगावहिं आईं॥
चेतन परा, न आवै चेतू। सब कहा 'एहि लाग परेतू'॥
कोई कहै, आहि सनिपातू। कोई कहै, कि मिरगी बातू॥
कोइ कह, लाग पवन झर झोला। कैसेहु समुझि न चेतन बोला॥
पुनि उठाइ बैठाएन्हि छाहौं। पूछहिं, कौन पीर हिय माहाँ? ॥
दहुँ काहू के दरसन हरा। की ठग धूत भूत तोहि छरा॥

 की तोहि दीन्ह काहू किछु, की रे डसा तोहि साँप?।
कहु सचेत होइ चेतन, देह तोरि कस काँप॥ ७ ॥

 

भएउ चेत चेतन चित चेता। नैन झरोखे, जीउ संकेता॥
पुनि जो बोला मति बुधि खोवा। नैन झरोखा लाए रोवा॥
बाउर बहिर सीस पै धुना। आपनि कहै, पराइ न सुना॥
जानहु लाई काहु ठगतुरी। खन पुकार, खन बातैं बौरी॥
हौं रे ठगा एहि चितउर माहाँ। कासौं कहौं, जाउँ केहि पाहाँ॥
यह राजा सठ बड़ हत्यारा। जइ राखा अस ठग बटपारा॥
ना कोइ बरज, न लोग गोहारी। अस एहि नगर होइ बटपारी॥

 दिस्टि दीन्ह ठगलाड़ू, अलक फाँस परे गीउ।
जहाँ भिखारि न बाँचे, तहाँ बाँच को जीउ? ॥ ८ ॥

 

कित धोराहर आइ झरोखे? । लेइ गइ जीउ दच्छिना धोखे॥
सरग ऊइ ससि करै अँजोरी। तेहि से अधिक देहुँ केहि जोरी? ॥
तहाँ ससिहि जौ होति वह जोती। दिन होइ राति, रैनि कस होती? ॥


(६)कोरी = बीस की संख्या। पवारा = फेंका। चौंधि उठा = आँखों में चकाचौंध हो। (७) सनिपातू = सन्निपात, त्रिदोष। (८) सँकेता = संकट में। ठगोरी लाई = ठग लिया; सुध बुध नष्ट करके ठक कर दिया। बौरी बावलों की सी। बरज = मना करता है। गोहारि लगना = पुकार सुनकर सहायता के लिये आना। (९) दच्छिना धोखै = दक्षिणा का धोखा देकर। जोरी = पटतर, उपमा। दिन होइ राति = तो रात में भी दिन होता और रात न होती।