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पदमावत

पखुरी काढ़हिं फूलन सेंती। सोई डासहिं सौंर सपेती॥
फूल समूचै रहै जौ पावा। व्याकुल होइ नींद नहिं आवा॥
सहै न खीर खाँड़ औ घीऊ। पान अधार रहै तन जीऊ॥
नस पानन्ह कै काढ़हिं हेरी। अधर न गड़ै फाँस ओहि केरी॥
मकरि के तार तेहि कर चीरू। सो पहिरे छिरि जाइ सरीरू॥
पालँग पावँ क आछै पाटा। नेत बिछाव चलै जौ बाटा॥

घालि नैन ओहि राखि पल नहिं कीजिय ओट।
पेम क लुबुधा पाव ओहि, काहु सो बड़ का छोट॥ १९ ॥

 

जौ राघव धनि बरनि सुनाई। सुना साह गइ मुरछा आई॥
जनु मूरति वह परगट भई। दरस देखाइ माहिं छपि गई॥
जो जो मँदिर पदमिनि लेखी। सूना जौ कँवल कुमुद अस देखी॥
होइ मालति धनि चित्त पईठी। और पुहुप कोउ आव न दीठी॥
मन होइ भँवर भएउ बैरागा। कँवल छाड़ि चित और न लागा॥
चाँद के रंग सुरुज जस राता। और नखत सो पूछ न बाता॥
तब कह अलाउदीं जगसूरू। लेउँ नारि चितउर कै चूरू॥

जौ वह पदमिनि मानसर, अलि न मलिन होइ जात।
चितउर महँ जो पदमिनी, फेरि उहै कहु बात ॥ २० ॥

 

ए जगसूर! कहौं तुम्ह पाहाँ। और पाँच नग चितउर माहाँ॥
एक हंस है पखि अमोला। मोती चुनै पदारथ बोला॥
दूसर नग जौ अमृत बसा। सा विष हरै नाग कर डसा॥
तीसर पाहन परस पखाना। लाह छुए होई कंचन बाना॥
चौथ अहै सादूर अहेरी। जो बन हस्ति धरै सब घेरी॥
पाँचव नग सो तहाँ लागना। राजपंखित पेखा गरजना॥
हरिन रोझ कोइ भागि न बाँचा। देखत उड़ै सचान होइ नाचा॥

नग अमोल अस पाँचौ, भेंट समुद ओहि दीन्ह।
इसकंदर जो न पावा, सो सायर धँसि लीन्ह॥ २१ ॥

 

डासहिं = बिछावती हैं। सौंर = चादर। फाँस = कड़ा तंतु। मकरि क तार = मकड़ी के जाले सा महीन। छिरि जाइ = छिल जाता है। पालँग पाँव पाटा = पैर या तो पलंग पर रहते हैं या सिंहासन पर। नैत = रेशमो कपड़े की चादर (स० नेत्र)। (२०) माहिं = भीतर (हृदय के)। जो जो मंदिर देखी = अपने घर को जिन जिन स्त्रियों को पद्मिनी समक्ष रखा था वे पद्मिनी (कँवल) का वृत्तांत सुनने पर कुमुदनी के समान लगने लगीं। कै चूरू = तोड़कर। मलिन = हतोत्साह। (२१) पदारथ = बहुत उत्तम बोल। परस पखाना = पारस पत्थर। सादूर = शार्दल, सिंह। लागना = लगनेवाला, शिकार करनेवाला। गरजना = गरजनेवाला। रोझ = नीलगाय। सचान = बाज। सायर = समुद्र।