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पद्मावती रूपचर्चा खंड

पान दीन्ह राघव पहिरावा। दस गज हस्ति घोड़ सो पावा॥
औ दूसर कंकन कै जोरी। रतन लाग ओहि बत्तिस कोरी॥
लाख दिनार देवाई, जेंवा। दारिद हरा समुद कै सवा॥
हौं जेहिं दिवस पदमिनि पावौं। तोहि राघव! चितउर बैठावौं॥
पहिले करि पाँचौ नग मूठी। सो नग लेउँ जो कनक अँगूठी॥
सरजा बीर पुरुष बरियारू। ताजन नाग सिंघ असवारू॥
दीन्ह पत्र लिखि बेगि चलावा। चितउर गढ़ राजा पहँ आवा॥

राजै पत्नि बँचावा, लिखी जो करा अनेग।
सिंघल कै जो पदमिनी, पठै देहु तेहि बेग ॥ २२ ॥

 


(२२) जेंवा = दक्षिणा में। ताजन नाग = नाग का कीड़ा। करा = कला से, चतुराई से।