पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९३
बादशाह चढ़ाई खंड

जसि भादौं निसि आवै दीठी। सरग जाइ हिरको तिन्ह पीठी॥
सवा लाख हस्ती जब चाला। परबत सहित सबै जग हाला॥
चले गयंद माति मद आवहिं। भागहिं हस्ती गंध जौ पावहिं॥
ऊपर जाइ गगन सिर धँसा। औ धरती तर कहँ धसमसा॥
भा भुइँचाल चलत जग जानी। जहँ पग धरहि उठै तहँ पानी॥

चलत हस्ति जग काँपा, चाँपा सेस पतार।
कमठ जो धरती लेइ रहा, बैठि गएज गजभार ॥ ९ ॥

 

चले जो उमरा मीर बखाने। का बरनौं जस उन्ह कर बाने॥
खुरासन औ चला हरेऊ। गौर बँगाला रहा न केऊ॥
रहा न रूम शाम सुलतानू। कासमीर ठट्टा मुलतानू॥
जावत बड़ बड़ तुरुक कै जाती। माँडोवाले ओ गजराती॥
पटन उड़ीसा के सब चले। लेइ गज हस्ति जहाँ लगि भले॥
कवँरु कामता औ पिंड़वाए। देवगिरि लेइ उदयगिरि आए॥
चला परवती लेइ कुमाऊँ। खसिया मगर जहाँ लगि नाऊँ॥

उदय अस्त लहि देस जो, को जानै तिन्ह नाँव।
सातौ दीप नवौ, जुरे आह इक टाँव॥ १० ॥

 

घनि सुलतान जेहिक संसारा। उहै कटक अस जोरै पारा॥
सबै तुरुक सिरताज बखाने। तबल बाज औ बाँधे बाने॥
लाखन मार बहादुर जंगी। जंबुर कमाने तीर खंदगी<ref>॥
जीभा खोलि राग सौं मढ़े। लेजम घालि एराकिन्ह चढ़े॥
चमकहिं पाखर सार सँवारी। दरपन चाहि अधिक उजियारी॥
बरन बरन औ पाँतिहि पाँती। चली सो सेना भाँतिहि भाँती॥
बेहर बेहर सब कै बोली। बिधि यह खानि कहाँ दहुँ खोली? ॥


हिरकी = लगी, सटी। तिन्ह = उनकी। हस्ती = दिग्गज। तर कहँ = नीचे को। उठै तहँ, पानी = गढ्ढा हो जाता है और नीचे से पानी निकल पड़ता है। (१०) बाने = वेश, सजावट। हरेऊ = हरेव, 'हरउअती' (सं० सरस्वती, प्राचीन पारसी-—हरह्वैती या अरगंदाब नदी के आसपास का प्रदेश जो हिंदूकुश के दक्षिण पश्चिम पड़ता है)। गौर = गौड़, बंग देश की राजधानी। शाम = अरब के उत्तर शाम का मुल्क। कामता, पिंडवा = कोई प्रदेश। मगर = अराकान जहाँ मग नाम की जाति रहती है। (११) जँबुर = जँबुर, एक प्रकार की तोप जो ऊँटों पर चलती थी। कमान = तोप। खंदगी = खदंग, बाण। १. पाठांतर--'तुफगी'। जीभा = जीभ। लेजिम [एक प्रकार की कमान जिसमें डोरी के स्थान पर लोहे का सीकड़ लगा रहता है और जिससे एक प्रकार की कसरत करते हैं। एराकिन्ह = एराक देश के घोड़ोंपर। पार = लड़ाई की झूल। सार = लोहा। बेहर बेहर = अलग अलग।