सात सात जोजन कर, एक दिन होइ पयान।
अगिलहि जहाँ पयान होइ, पछिलहि तहाँ मिलान॥११॥
डोले गढ़ गढ़पति सब काँपै। जीउ न पेट हाथ हिय चाँपै॥
काँपा रनथँभउर गढ़ डोला। नरवर गएउ झुराइ न बोला॥
जूनागढ़ औ चंपानेरी। काँपा माड़ौ लेई चँदेरी॥
गढ़ गुवालियर परी मथानी। औ अँधियार मथा भा पानी॥
कालिंजर महँ परा भगाना। भागेउ जयगढ़ रहा न थाना॥
काँपा बाँधव नरवर राना। डर रोहातास विजयगिरि माना॥
काँप उदयगिरि देवगिरि डरा। तब सो छपाइ आपु कहँ धरा॥
जावत गढ़ औ गढ़पति, सब काँपे जस पात।
का कहँ बोलि सौहँ भा, बादशाह कर छात? ॥१३॥
चितउरगढ़ औ कुंभलनेरै। साजे दूनौ जैस सुमेरै॥
द्वतन्ह आइ कहा जहँ राजा। चढ़ा तुरुक आवै दर साजा॥
सुनि राजा दौराई पाती। हिंदू नावँ जहाँ लगि जाती॥
चितउर हिंदुन कर अस्थाना। सत्रु तुरुक हठि कीन्ह पयाना॥
आव समुद्र रहै नहिं बाँधा। मैं होइ मेड़ भार सिर काँधा॥
पुरवहु साथ तुम्हारि बड़ाई। नाहिं त सत को पार छँड़ाई? ॥
जौ लहि मेड़ रहै सुख साखा। टूटे बारि जाइ नहिं राखा॥
सती जौ जिउ महँ सत धरै, जरै न छाँड़ै साथ।
जहँ, बीरा तहँ, चून है, पान सोपारी काथ ॥१३॥
करत जो राय साह कै सेवा। तिन्ह कहँ आइ सुनाव परेवा॥
सब होइ एकमते जो सिधारे। बादसाह कहँ आइ जोहारे॥
है चितउर हिंदुन्ह के माता। गाढ़ परै तजि जाइ न नाता॥
रतनसेन तहूँ जौहर साजा। हिंदुन्ह माँझ आहि बड़ राजा॥
हिंदुन्ह केर पतँग कै लेखा। दौरि परहिं अगिनी जहँ देखा॥
कृपा करहु चित बाँधहु धीरा। नातरू हमहिं देहु हँसि वीरा॥
पुनि हम जाइ मरहिं ओहि ठाऊँ। मेटि न जाई लाज सौं नाऊँ॥
(२१) माँड़ो लेई = माँड़ौगढ़ से लेकर। मथानी परी = हलचल मचा। अँधियार = अँधियार और खटोला दक्षिण के दो स्थान। पात = पत्ता। बोलि = चढ़ाई बोलकर। छात = छत्र। (१३) जैस सुमेरै = जैसे सुमेरू ही हैं। दर = दल। पाती = पत्री, चिट्ठी। मेड़ = बाँध। बाँधा = ऊपर लिया। नाहिं त सत छँड़ाई = नहीं तो हमारा सत्य (प्रतिज्ञा) कौन छुड़ा सकता है अर्थात् मैं अकेले ही अड़ा रहूँगा। टूटे = बाँध टूटने पर। बारि = बारी, बगीचा। (१४) राय = राजा। परेवा = चिड़िया यहाँ दूत। जौहर = लड़ाई के समय की चिता जो गढ़ में उस समय तैयार की जाती थी। जब राजपूत बड़े भारी शत्रु से लड़ने निकलते थे और जिसमें हार का समाचार पाते ही सब स्त्रियाँ कूद पड़ती थीं। पतँग के लेखा = पतंगो का सा हाल है। बीरा देहु = बिदा करो कि हम वहाँ जाकर राजा की ओर से लड़े।