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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३७९

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बादशाह चढ़ाई खंड

आवै डोलत सरग पतारा। काँपै धरति, अँगवै भारा॥
टूटहिं, परबत मेरु पहारा। होइ चकचून उड़हिं तेहि झारा॥
सत खँड धरती भइ षटखंडा। ऊपर अष्ट भए बरम्हंडा॥
इंद्र आइ तिन्ह खंडन्ह छावा। चढ़ि सब कटक घोड़ दौरावा॥
जेहि पथ चल ऐरावत हाथी। अबहुँ सो डगर गगन महँ आथी॥
औ जहँ जामि रही वह धरी। अबहुँ बसै सो हरिचँद पूरी॥
गगन छपान खेह तस छाई। सूरुज छपा, रैनि होइ आई॥

गएउ सिकंदर कजरिबन, तस होइगा अँधियार।
हाथ पसारे न सूझै, बरै लाग मसियार ॥२१॥

 

 दिनहि रात अस परी अचाका। भा रवि अस्त, चंद्र रथ हाँका॥
मंदिर जगत दीप परगसे। पंथी चलत बसेरै बसे॥
दिन के पंखि चरत उड़ि भागे। निसि के निसरि चरै सब लागे॥
कँवल संकेता, कुमुदिनि फूली। चकवा बिछुरा, चकई भूली॥
चला कटक दल ऐस अपूरी। अगिलहि पानी, पछिलहि धूरी॥
महि उजरी सायर सब सूखा। बनखँड रहेउ न एकौ रूख॥
गिरि पहार सब मिलि गे माटी। हस्ति हेराहिं तहाँ होइ चाँटी॥

जिन्ह घर खेह हेराने, हेरत फिरत सो खेह।
अब तो दिस्टि तब आवै, अंजन नैन उरेह॥ २२ ॥

 

एहि विधि होत पयान सो आवा। आइ साह चितउर नियरावा॥
राजा राव देख सब चढ़ा। आव कटक सब लोह मढ़ा॥
चहुँ दिसि दिस्ट परा गजजूहा। साम घटा मेघन्ह अस रूहा॥
अध ऊरध किछु सूझ न आना। सरगलोक घुम्मरहिं निसाना॥
चढ़ि धौराहर देखहिं रानी। धनि तुइ अस जाकर सुलतानी॥
की धनि रतनसेन तुइँ राजा। जा कहँ तुरुक कटक अस साजा॥


(२१) चकचून = चकनाचूर। सतखँड षटखंडा = पृथ्वी पर की इतनी धूल ऊपर उड़कर जा जमी कि पृथ्वी के सात खंड या स्तर के स्थान पर छह ही खंड रह गए और ऊपर के लोकों के सात के स्थान पर आठ खंड हो गए। जेहि पथ आथी = ऊपर जो लोक बन गए उनपर इंद्र ऐरावत हाथी लेकर चले जिसके चलने का मार्ग ही आकाशगंगा है। आथी = है। हरिचँद पूरी = वह लोक जिसमें हरिश्चंद्र गए। मसियार = मशाल। (२२)अचाका = अचानक, एकाएक। संकेता = संकुचित हुआ। अपूरी = भरा हुआ। अगिलहि पानी धूरी अगली सेना को तो पानी मिलता है पर पिछली को धूल ही मिलती है। उजरी = उजड़ी। जिन्ह घर खेह खेह = जिनके घर धूल में खो गए हैं अर्थात् संसार के मायामोह में जिन्हें परलोक नहीं दिखाई पड़ता है। उरेह = लगाए। (२३) रूहा = चढ़ा। सुलतानी = बादशाहत। की धनि राजा = या तो राजा तू धन्य है।