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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३८५

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राजा बादशाह युद्ध खंड

परहिं बान राजा के, सकै को सनमुख काढ़ि।
ओनई सेन साह कै रही भोर लगि ठाढ़ि॥ ८ ॥

 

भएउ बिहानु, भानु पुनि चढ़ा। सहसहु करा दिवस विधि गढ़ा॥
भा धावा गढ़ कीन्ह गरेरा। कोपा कटक लाग चहुँ फेरा॥
बान करोर एक मुख छूटहिं। बाजहिं जहाँ फोंक लगि फूटहिं॥
नखत गगन जस देखहिं घने। तस गढ़ कोटन्ह बानन्ह हने॥
बान बेधि साही कै राखा। गढ़ भा गरुड़ फुलावा पाँखा॥
ओहि रँग केरि कठिन है बाता। तौ पै कहै होइ मुख राता॥
पीठि न देहि घाव के लागे। पैग पैग भुइँ चापहिं आगे॥

चारि पहर दिन जूझ भा, गढ़ न टूट तस बाँक।
गरुअ होत पै आवै दिन दिन नाकहि नाक॥ ९ ॥

 

छेंका कोट जोर अस कीन्हा। घुसि कै सरग सुरँग तिन्ह दीन्हा॥
गरगज बाँधि कमानैं धरीं। बज्र आगि मुख दारू भरी॥
हवसी, रूमी और फिरंगी। बड़ बड़ गुनी और तिन्ह संगी॥
जिन्हके गोट कोट पर जाहीं। जेहि ताकहि चूकहिं तेहि नाहीं॥
अस्ट धातु के गोला छूटहिं। गिरहिं पहार चून होइ फूटहिं॥
एक बार बस छूटहिं गोला। गरजै गगन, धरति सब डोला॥
फूटहिं कोट फूट जनु सीसा। औदरहिं बुरुज जाहिं सब पीसा॥

लंका रावट जस भई, दाह परा गढ़ सोइ।
रावन लिखा जरै कहँ, कहहु अजर किमि होइ ॥१०॥

 

राजगीर लागे गढ़ थवई। फूटै जहाँ सँवारहिं सवई॥


सकै, को काढ़ि = उन बाणों के सामने सेना को कौन आगे निकाल सकता है? (९) गरेरा = घेरा। एक मुख = एक ओर। बाजहिं = पड़ते हैं। फोंक = तीर का पिछला छोर जिसमें पर लगे रहते हैं। बाजहिं जहाँ फूटहिं = जहाँ पड़ते हैं पिछले छोर तक फट जाते हैं, ऐसे जोर से वे चलाए जाते हैं। रँग = रणरंग। नाक = नाका, मुख्य स्थान। (१०) सुरँग = सुरंग, जमीन के नीचे खोदकर बनाया हुआ मार्ग (यह शब्द महाभारत में आया है और यूनानी 'सिरिंजस' से बना हुआ अनुमान किया गया है। श्री चितामणि वैद्य के अनसार 'भारत' को 'महाभारत' के नाम से परिवर्धित रूप सिकंदर के आने पर दिया गया है)। गरगज = परकोटे का वह बुर्ज जिसपर तोप चढ़ाई जाती है। कमानै = तोपैं। दारू = बारूद। फिरंगी = पुर्तगाली (फारस में यह शब्द रूम से आया जहाँ 'धर्मयुद्ध' के समय योरप से आए हुए 'फ्रांक' लोगों के लिये पहले पहल व्यवहृत हुआ। फारस से यह शब्द हिंदुस्तान में आया और सबसे पहले आए पुर्तगालियों के लिये प्रयुक्त हुआ)। गोट = गोले। ओदरहिं = ढह जाते हैं। रावट = महल। अजर = जो न चलै। (११) थवई = मकान बनानेवाले (सं० स्थपित)।