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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३८६

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पदमावत

बाँके पर सुठि बाँक करेहीं। रातिहि कोट चित्र कै लेहीं॥
गाजहिं गगन चढ़ा जस मेघा। बरिसहि बज्र, सीस को ठेवा? ॥
सौ सौ मन के बरसहिं गोला। बरसहिं तुपक तीर जस ओला॥
जानहुँ परहिं सरग हुत गाजा। फाटे धरति आइ जहँ बाजा॥
गरगज चूर चूर होइ परहीं। हस्ति घोर मानुष संघरहीं॥
सबै कहा अब परलै आई। धरती सरग जूझ जनु, लाई॥

आठौ बज्र जुरे सब, एक डुंगवै लागि।
जगत जरै चारिउ दिसि, कैसेहु बुझै न आगि॥११॥

 

तबहूँ राजा हिये न हारा। राज पौरि पर रचा अखारा॥
सो साह कै बैठक जहाँ। समुहें नाच करावै तहाँ॥
जंत्र पखाउज औ जत बाजा। सुर मादर रबाब भल साजा॥
बीना बेनु कमाइच गहे। बाजे अमृत तहँ गहगहे॥
चंग उपग नाद सुर तूरा। महुअर बंसि बाज भरपूरा॥
हुड़क बाज, डफ बाज गंभीरा। औ बाजहिं बहु झाँझ मजीरा॥
तंत बितंत सुभर धनतारा। बाजहिं सबद होइ झनकारा॥

जग सिंगार मनमोहन पातुर नाचहिं पाँच।
बादशाह गढ़ छेका, राजा भूला नाच ॥ १२ ॥

 

बीजानगर केर सब गुनी। करहिं अलाप जैस नहिं सुनी।
छवौ राग गाए सँग तारा। सगरी कटक सुनै झनकारा॥
प्रथम राग भैरव तिन्ह कीन्हा। दूसर मालकोस पुनि लीन्हा॥
पुनि हिंडोल राग भल गाए। मेघ मलार मेघ बरिसाए॥
पाँचवँ सिरी राग भल किया। छछवाँ दीपक बरि उठ दिया॥
ऊपर भए सो पातुर नाचहिं। तर भए तुरुक कमानैं खाँचहिं॥
गढ़ माथे होश उमरा झुमरा। तर भए देख मीर औ उमरा॥

सुनि सुनि सीस धुनहि सब, कर मलि मलि पछिताहिं।
कब हम माथ चढ़हिं ओहि, नैनन्ह के दुख जाहिं॥ १३ ॥

 

चित्र = ठीक, दुरुस्त। तुपक = बंदूक। बाजा = पड़ते हैं। धरती सरग = आकाश और पृथ्वी के बीच। डुंगवै टीला। (१२) समूहें = सामने। मादर = मर्दल, एक प्रकार का ढोल। रबाब= एक बाजा। कमाइच = (फा॰ कमानचा) सारंगी बजाने की कमान। उपंग = एक बाजा। तूरा = तूर, तुरही। महुअर = सूखी तुमड़ी का बाजा जिसे प्राय सँपेरे बजाते हैं। हुड़क = डमरू की तरह का बाजा जिसे प्राय: कहार बजाते हैं। तंत = तंत्री। धनतार = बड़ा झाँझ। (१३) ऊपर भए; तर भए = ऊपर से; नीचे से (पंचमी विभक्ति के स्थान पर 'भए' का प्रयोग अबतक पूरबी हिंदी में होता है)। गढ़ माथे = किले के सिरे पर। उमरा झूमरा = झूमर, नाच।