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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/३९२

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पदमावत

'कैसेहु जाड़ न मेटा भएउ साम तिन्ह अंग।
सहस बार जौ धोवा तबहुँ न गा वह रंग ॥ ७ ॥

 

"अब सेवा जो आइ जोहारे। अबहुँ देखु सेत की कारे॥
कहौं जाइ जौ साँच, न डरना। जहवाँ सरन नाहिं तहँ, मरना॥
काल्हि आव गढ़ ऊपर भानू। जो रे धनुक, सौंह होइ बानू'॥
पान बसीठ मया करि पावा। लीन्ह पान, राजा पहँ आवा॥
जस हम भेंट कीन्ह गा कोहू। सेवा माँझ प्रीति औ छोहू॥
काल्हि साह गढ़ देखै मावाँ। सेवा करहु जैस मन भावा॥
गुन सौं चले जो बोहित बोझा। जहँवाँ धनुक बान तहँ सोझा॥

भा आयसु अस राजधर, बेगि दै करहु रसोइ।
ऐस सुरस रस मेरवहु, जेहि सौं प्रीति रस होइ ॥ ८ ॥

 


(८) अब सेवा...जोहारे = उन्होंने मेल कर लिया है तू अब भी देख सकता है कि श्वेत हैं या काले अर्थात् वे छल नहीं करेंगे। जो रे धनुक...बानू = जो अब वह किले में मेरे जाने पर किसी प्रकार की कुटिलता क रेगा तो उसके सामने फिर बाण होगा (धनुष टेढ़ा होता है और बाण सीधा) गुन = गून, रस्सी। जहँवाँ धनुक...सोझा = जहाँ कुटिलता हुई कि सामने सीधा बाण तैयार है।