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पदमावत

गीत नाद अस घंधा, दहक बिरह कै आँच।
मन कै डोरी लाग तहँ, जहँ सो गहि गुन खाँच ॥ ६ ॥

 

गोरा बादल राजा पाहाँ। रावत दुवौ दुवौ जनु बाहाँ॥
माइ स्त्रवन राजा के लागे। मूसि न जाहिं पुरुष जो जागे॥
बाचा परखि तुरुक हम बूझा। परगट मेर गुपुत छल सूझा॥
तुम नहीं करौ तुरुक सौं मेरू। छल पै करहि अंत कै फेरू॥
बैरी कठिन कुटिल जस काँटा। सो मकोय रह राखै आँटा॥
सत्रु कोट को आइ अगोटी। मीठी खाँड़ जेवाएहु, रोटी॥
हम तेहि ओछ क पावा घातू। मूल गए सँग न रहै पातू॥

यह सो कृस्न बलिराज जस, कीन्ह चहै छर बाँध।
हम्ह बिचार अस आवै, मेर न दीजिय काँध ॥ ७ ॥

 

सुनि राजहि यह बात न भाई। जहाँ मेर तहँ नहिं अधमाई॥
मंदहि भल जो करै भल सोई। अंतहि भला भले कर होई॥
सत्रु जो विष देइ चाहै मारा। दीजिय लोन जानि विष हारा॥
विष दीन्हें विसहर होइ खाई। लोन दिए होइ लोन बिलाई॥
मारे खड़ग खड़ग कर लेई। मारे लोन नाइ सिर देई॥
कौरव बिष जो पंडवन्ह दीन्हा। अंतहि दाँव पंडवन्ह लाना॥
जो छल करै ओहि छल बाजा। जैसे सिंघ मँजूसा साजा[१]


दहक = जिससे दहकता है। गुन = डोरी। खाँच = खींचती है। (७) रावत = सांमत। दुवौ जनु बाँहा = मानों राजा की दोनों भुजाएँ हैं। स्त्रवन लागे = कान में लगकर सलाह देने लगे। मूसि न जाहिं = लूटे नहीं जाते हैं। बाचा परखि...बुझा = उस मुसलमान की मैं बात परखकर मुसलमान समझ गया हूँ। मेर = मेल। कैफेरू = घुमा फिराकर। बैरी = (क) शत्रु; (ख) बेर का पेड़। सो मकोय रह...आँटा = उसे मकोय की तरह (काँटे लिए हुए) ओट या दाव में रख सकते हैं। आटा = दावँ, जैसे -- "न ये विससिए लखि नए, दुर्जन दुसह सुभाय। आँटे परि आनन हरैं, काँटै लौं लगि पाय॥" ---बिहारी। अगोटी = छेंका। ओछ = ओछे, नीच। पावा घातू = दाँव पेच समझ गया। मूल गए...पातू = उसने सोचा है कि राजा को पकड़ लें तो सेना सामंत आप ही न रह जायेंगे। कृ‌स्न = विष्णु, वामन। छर बाँध = छल का आयोजन। काँध दीजिय = स्वीकार कीजिए। (८) विष हार = विष हरनेवाला। बिसहर = विषधर, साँप। होइ लोन विलाई = नमक की तरह गल जाता है। कर लेई = हाथ में लेता है। मारे लोन = नमक से मारने से, अर्थात् नमक का एहसान ऊपर डालने से। बाजा = ऊपर पड़ता है।

  1. एक ब्राह्मण देवता ने दया करके एक शेर को पिंजड़े से निकाल दिया। शेर उन्हें खाने दौड़ा। ब्राह्मण ने कहा, भलाई के बदले में बुराई नहीं करनी चाहिए। शेर कहने लगा, अपना भक्ष्य नहीं छोड़ना चाहिए। अंत में गीदड़ पंच हुआ। उसने कहा तुम दोनों जिस दशा में थे उसी दशा में थोड़ी देर के लिये फिर हो जाओ तो मैं मामला समझूँ। शेर फिर पिंजड़े में चला गया। गीदड़ ने इशारा किया और ब्राह्मण ने पिंजड़े का द्वार फिर बंद कर दिया।