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पदमावत

कोई लेइ लेई आवहिं थारा। कोइ परसहिं छप्पन परकारा॥
पहिरि जो चीर परोसै आवहिं। दूसरि और बरन देखरावहिं॥
बरन बरन पहिरे हर फेरा। आव झुंड जस अछरिन्ह केरा॥

पुनि सँधान बहु आनहिं, परसहिं बूकहिं बूक।
करहिं सँवार गोसाईं, जहाँ परे किछु चूक॥ ११ ॥

 

जानहु नखत करहिं सब सेवा। बिनु ससि सूरहिं भाव न ज़ेवा॥
बह परकार फिरहिं हर फेरे। हेरा बहुत न पावा हेरे॥
परीं असूझ सबै तरकारी। लोनी बिना लोन सब खारी॥
मच्छ छुवै आवहिं गड़ि काटा। जहाँ कवँल तहँ हाथ न आँटा॥
मन लागेउ तेहि कवँल के डंडी। भावै नाहिं एक कनउंडी॥
सो जेंवन नहिं जाकर भूखा। तेहि बिन लाग जनहुँ सब सूखा॥
अनभावत चाखै बैरागा। पंचामृत जानहुँ, विष लागा॥

बैठि सिंघासन गूँजै, सिंघ चरे नहिं घास।
जौ लगि मिरिग न पावै, भोजन करै उपास॥ १२ ॥

 

पानि लिए दासी चहुँ ओरा। अमृत मानहुँ भरे कचोरा॥
पानी देहि कपूर के बासा। सो नहि पियै दरस कर प्यासा॥
दरसन पानि देइ तो जीऔं। बिनु रसना नयनहिं सौ पीऔं॥
पपिहा बूँद सेवातिनी अघा। कौन काज जौ बरिसै मघा? ॥
पुनि लोटा कोपर लेइ आई। कै निरास अब हाथ धोवाई॥
हाथ जो धोवै विरह करोरा। सँवरि सँवरि मन हाथ मरोरा॥
विधि मिलाव जासौं मन लागा। जोरहि तूरि प्रेम कर तागा॥

हाथ धोइ जब बैठा, लीन्ह ऊबि कै साँस।
सँवरा सोइ गोसाईं, देइ निरासहि आस॥ १३ ॥

 

सँधान = अचार। चूकहि बूक = चंगुल भर भरकर। करहिं सँवार गोसाईं डर के मारे ईश्वर का स्मरण करने लगती हैं। (१२) नखत = पद्मिनी की दासियाँ। ससि = पद्मिनी। जेंवा = भोजन करना। बहु परकार = बहुत प्रकार की स्त्रियाँ। परी असूझ = आँख उनपर नहीं पड़ती। लोनी = सुंदरी पद्मिनी। लोन सब खारी = सब खारी नमक के समान कड़वी लगती हैं। आवहिं गड़ि = गड़ जाते हैं। न आटा = नहीं पहुँचता है। कँवल के डंडी = मृणाल रूप पद्मिनी में। कनउडी = दासी। अनभावत = बिना मन से। वैरागा = विरक्त। उपास = उपवास। (१३) कचोरा = कटोरा। अघा = अघाता है, तृप्त होता है। मघा = मघा नक्षत्र। कोपर = एक प्रकार का बड़ा थाल या परात। हाथ धोवाई = बादशाह ने मानो पद्मिनी के दर्शन से हाथ धोया। बिरह करोरा = हाथ जो धोने के लिये मलता है मानो बिरह खरोच रहा है। हाथ मरोरा = हाथ धोता है, मानो पछताकर हाथ मलता है।