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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४०५

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चित्तौरगढ़ वर्णन खंड

रैनि बीति गइ, भोर भा, उठा सूर तब जागि।
जो देखै ससि शाहीं, रही करा चित लागि॥ १८ ॥

 

भोजन-प्रेम सो जान जो जेवा। भँवरहिं रुचै बास-रस-केवा॥
दरस देखा जाइ ससि छपी। उठा भानु जस जोगी तपी॥
राघव चेति साह पहँ गएउ। सूरज देखि कवँल बिसमयऊ॥
छत्रपती मन कीन्ह सो पहुँचा। छत्र तुम्हार जगत पर ऊँचा॥
पाट तुम्हार देवतन्ह पीठी। सरग पतार रहै दिन दीठी॥
छोह ते पलुहहिं उकठे रूखा। कोह तें महि सायर राब सूखा॥
सकल जगततुम्ह नावै माथा। सब कर जियन तुम्हारे हाथा॥

दिनहिं नयन लाएहु तुम, रैनि भाहु तहिं जाग।
कस निचिंत अस सोएहु, काह बिलँव अस लाग?॥ १९ ॥

 

देखि एक कौतुक हौं रहा। रहा अँतरपट, पे नहिं अहा।
सरवर देख एक मैं सोई। रहा पानि, पै पान न होई॥
सरग आइ धरती महँ छावा। रहा धरति, पै धरत न आवा॥
तिन्हँ मुहँ पुनि एक मंदिर ऊँचा। करन्ह अहा, पर कर न पहूँचा॥
तेहि मंडप मूरति मैं देखी। बिनु तन, बिनु जिऊ जाइ विसैखी॥
पूरन चंद होई जनु तपी। पारस रूप दरस देइ छपी॥
अब जहँ चतुरदसी जिउ तहाँ। भानु अमावस पावा कहाँ?॥


करा =कला, शोभा। (१९) भोजन प्रेम = प्रेम का भोजन (इस प्रकार के उलटे समास जायसी में प्राय: मिलते हैं--शायद फारसी के ढ़ग पर हों)। सो जान = वह जानता है। बास-रस-केवा = केवा बास रस अर्थात् कमल का गंध और रस। सूरज देखि बिसमयऊ = (वहाँ जाकर देखा कि) सूर्य-बादशाह कमल-पद्मिनी को देख कर स्तब्ध हो गया है। दिन = प्रतिदिन, सदा। पलुहहिं = पनपते हैं। उकठे = सूखे। तुम्ह = तुम्हें। दिनहिं नयन जाग = दिन के सोए आप रात होने पर भी न जागे। निचिंत = बेखबर। (२०) रहा अंतरपट अहा = (क) परदा था और भी और नहीं भी था अर्थात् परदे के कारण मैं उस तक पहुँच नहीं सकता था। पर उसकी झलक देखता था (पद्मावती के प्रतिबिंब को शाह ने दर्पण में देखा था); (ख) यह जगत् ब्रह्म और जीव के बीच परदा है पंर उसमें उसकी झलक भी दिखाई पड़ती है। रहा पानि न होई = उसमें पानी था पर उसतक पहुँच मैं पी नहीं सकता था। सरवर = वह दर्पण ही यहाँ सरोवर के समान दिखाई पड़ा। सरग आइ धरती आवा = सरोवर में आकाश (उसका प्रतिबिंब) दिखाई पड़ता है पर उसे कोई छू नहीं सकता। धरति =धरती पर।धरती न आवा =पकड़ाई नहीं देता था। करन्ह अहा = हाथों में ही था।अब जहँ चतुरदसी कहाँ = चौदस (पुर्णिमा के चंद के समान जहाँ पद्मिनी है जीव तो वहाँ है अमावस्या में सूर्य (शाह) तो है ही नहीं। वह तो चतुर्दशी में है, चतुर्दशी में ही उसे अद्भुत ग्रहण लग रहा है। लौकि नई =

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