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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४१५

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देवपाल दूती खंड

बिहँसि जो जोबन कुमुदिनि कहा। कँवल न बिगसा, संपुट रहा॥
ए कुमुदिनि! जोबन तेहि माहा। जो आछै पिउ के सुख छाहाँ॥
जाकर छत्र सो बाहर छावा। सो उजार घर कौन बसावा?॥
अहा न राजा रतन अँजोरा। केहिक सिंघासन, केहिक पटोरा?॥
को पालक पौढ़े ,को माढ़ी? । सोवनहार परा बँदि गाढ़ी॥
चहुँ, दिसि यह घर भा अँधियारा। सब सिगार लेइ साथ सिधारा॥
कया बेलि तब जानौं जामी। सींचनहार छाब घर स्वामी॥

तौ लहि रहौं झुरानी, जौ लहि आव सो कंत।
एहि फूल, एहि सेंदुर, नव होइ उठै बसंत॥ ९ ॥

 

जिनि तुइ, बारि! करसि अस जीऊ। जौ लहि जोबन तौ लहि पीऊ॥
पुरुष संग आपन केहि केरा। एक कोहाँइ, दूसर सहुँ हेरा॥
जोबन जल दिन दिन जस घटा। भँवर पछान, हंस परगटा॥
सुभर सरोवर जौ लहि नीरा। बहु आदर, पंखी बहु तीरा॥
नौर घटे पुनि पूछ न कोई। बिरसि जो लीज हाथ रह सोई॥
जौ लगि कालिंदी, होहि बिरासी। पुनि सुरसरि होइ समुद परासी॥
जोबन भवँर, फूल तन तोरा। विरिध पहुँचि जस हाथ मरोरा॥

कृस्न जो जोबन कारनै, गोपीतिन्ह के साथ।
छरि कै जाइहि बानपै, धनुक, रहै तोरे हाथ॥ १० ॥

 

जौ पिउ रतनसेन मोर राजा। बिनु पिउ जोबन कौने काजा॥
जौ पै जिउ तौ जोबन भला। आपन जैस करै निरमला॥
कुल कर पुरुष सिंघ जेहि खेरा। तेहि थर केस सियार बसेरा?॥


(९) अँजोरा = प्रकाशवाला। माढ़ी = मंच, मचिया। बँदि = बंदी में। एहि फूल = इसी फूल से। (१०) कोहाँइ = रूठती है। सहुँ = सामने। भँवर = (क) पानी का भँवर; (ख) भौंरे के समान काले केश। भँवर छपान...परगटा = पानी का भँवर गया और हंस आया (जल की बरसाती बाढ़ हट जाने पर शरत् में हंस आ जाते हैं) अर्थात् काले केश न रह गए, सफेद बाल हुए। बिरसि जो लीज = जो बिलस लीजिए, जो विलास कर लीजिए। जौ लगि कालिंदी... परासी = जब तक कालिंदी या जमुना है विलास कर ले फिर तो गंगा में मिलकर, गंगा होकर, समुद्र में दौड़कर जाना ही पड़ेगा, अर्थात् जबतक काले बालों का यौवन है तबतक विलास कर ले फिर तो सफेद बालोवाला बुढ़ापा आवेगा और मृत्यु की ओर झटपट ले जायगा। बिरसी = बिलासी। प्रवासी = तू भागती है अर्थात् भागेगी। (१०) जोबन भँवर...तोरा = इस समय जोबनरूपी भौरा (काले केश) है और फूल सा तेरा शरीर है। विरिध = वृद्धावस्था। हाथ मरोरा = इस फूल को हाथ से मल देगा। बान = (क) तीर; (ख) वर्ण, कांति। धनुक = टेढ़ी कमर। (११) आपन जैस = अपने ऐसा। खेरा = घर, बस्ती। थर = स्थल, जगह।