पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४२९

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(५३) गोरा बादल युद्ध खंड मतें वैठि बादल श्र गोरा। सो मत बीज परै नहि भोरा ॥ पुरुष न करह नारि मति काँची। जस नौशाबा कीन्ह न बाँची ॥ परा हाथ इसकंदर बैरी । सो कित छोड़ि के भई बैंदेरी । सुधि सो ससा सिंघ कहें मारा । कुबुधि सिंघ कू परि हारा। देवहि द्वरा श्राइ अस माँटी। सज्जन कंचन, दुर्जन माटी ॥ कंचन जु भए दस खंडा। फूटि न मिल काँच कर भंडा। जस तुरकन्ह राजा और साजा। तस हम साजि छोड़ावह राजा ॥ पुरुप तहाँ पे करे छर जह बर किए न अट । जहाँ फूल तहें फूल है, जहाँ काँट त; सोरह से चंडोल सँवारे। कुंवर सजोइल के बैठारे ॥ पदमावति कर सजा विवान । बैठ लोहार न जाने भान । रचि विवान सो साजि सँवारा। चलें दिसि चंवर कह सब ढाएं। साजि सबै चंडोल चलाए। सुरैग ओोहार, मोति बहु लाए । भए ढंग गोरा बादल बली। कहत चले पदमावति चली ॥ हीरा रतन पदारथ झलहि। देखि बिवान देवता भूलह ॥ सोरह से सँग चलीं सहलो। केंवल न रहाऑोर को बेली ? । राजहि चलीं छोड़ावै त, रानी होइ ओल । तीस सहस तुरि खिची सैंग, सोरह से डोल ॥ २ ॥ (१) मढूं = सलाह करते हैं । कीज = कीजिए। नौशाबा = सिकंदरनामा के अनुसार एक रानी जिसके यहाँ सिकंदर पहले दूत बनकर गया था । उसने सिकंदर को पहचानकर भी छोड़ दिया । पीछे सिकंदर ने उसे अपना अधीन मित्र बनाया और उसने बड़ी धूमधाम से सिकंदर की दावत कीं । देवहि छरा = राजा को उसने (अलाउद्दीन ने) छला। आा अस ग्रांटो = इस प्रकार अंटी पर चढ़कर अर्थात् कब्जे में जाकर भी। भंडा = भाड़ा, बरतन । न ग्राँट = नहीं पार पा सकते ।' (२) चंडोल = पालकी। कुंवर = राजपूत सरदार । सजोइल = हथियारों से तैयार । ठ लोहार‘भान = पद्मावती के लिये जो पालकी बनी थी उसके भीतर एक लुहार बंटा; इस बात का सूर्य को भी पता न लगा । ग्रोहार = पालकी ढाँकने का परदा । वल ली = जब पद्मावती ही नहीं रही तब औौर सखियों का क्या ? आल होइ = ओोल होकरइस शर्त पर बादशाह के यहाँ रहने जाकर कि राजा छोड़ दिए जा (कोई व्यक्ति जमानत के तौर पर यदि रख लिया जाता है तो उसे औोल कहते हैं) । सुरि = घोड़ियाँ ।