पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४४६

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२६४
अखरावट

२६४ अखरावट ापू अल ख पहिले हृत जहाँ । नाँव न टावें न मूरति तहाँ पूर पुरानपाप नहि पुन्नू । गुप्त ने गुप्त, सुन्न से सुलू ॥ अलख अकेलसबद नह भाँती। सूरुज, चाँद, “दिवस नह रात ॥ माखर, सुर, नहि वोलमुकारा। अकथ कथा का कहीं बिचारा ॥ कियूं कहिए त कि नहि आाखीं। मैं कि मुह किटु ढिय म्हें राखीं । बिना उरेह अरंभ । बखाना। आा समान। हुता जापु माँ !। नास न, बास न, मानुष ग्रंडा। भएचौखंड जो ऐस पवं दोहा सरग न, धरति न खंभमयवरम्ह न बिसुन महेस । बजर बीज बो अस, मोहि। न रंग, न म। सरा तब भा पुनि अंकूरसरजा दीपक निरमला॥ रवा मुहम्मद नूर, जज गत रहा उजियार होइ ॥ २ ॥ ऐस जो ठाकूर किय एक दाऊँ। पहिले । रचा महम्मद नाऊ तेहि के प्रति बीज अस जामा। भए दुइ विरिछ सैत ओ सामा ! होतें बिरवा भए दुइ पाता। पिता सरग ग्री धरती माता | सूरज, चाँद दिवस ओो राती। एकहि दूसर भएछ सँघाती ॥ चलि सो लिखनी भड दुइ फारा। बिरिछ एक उपनी दुइ डारा ॥ भेंटन्हि जाड़ पुनि श्री पाए। दुख श्री सुख, आाद संतापू ।। ऑो भए नरक बैक्ट। भल औौ , सच झ है." तब मंदऔौ दाहा नूर मुहम्मद देखि तब भा हुलास मन सोडे ! पुनि इबली मचारेड, डरत रहै सब कोई ॥ (२) पर पुरान = पूर्ण पुराण पूरुष हो था । गुफ्त में सुन्नू : गुप्त भी गुप्त श्रौर शून्य । सुर = से शून्य से भी स्वर । किछ कहिए’ ’ ग्राख = याद में कुछ कहता हूं, तो भी मानो उसके संबंध में कुछ नहीं कहता , हूं, वह वर्णन के बाहर है । उरेह = रूपरेखा या चित्र । अंडा = पिड, शरीर । क्योकि चौखंड के = ओोर । पठंडा = प्रपंच बिस्तार । खंभमय = खंभों सहित चारT (पहाड़ = पृथ्वी के खंभे हैं) । वरम् ह्मा। बजर वीज ठीरी आ स = इस संसार रूपी वृक्ष का व लू के समान स्थिर बीज मात्र था ठाकुरदाऊँ ने एक बार ऐसा किया। तेहि के (३) ऐसा जो उस प्रभ मुसलमानों के अनुसार मुहम्मद साहब की खातिर से ही दुनियाँ । पिता सगंधरती माता = चित पर और अचित (जड) पक्ष । अगर पैदा की गई । कवि मेरेडिथ ने स्वर्ग चौर पृथ्वी के विवाह को ऐसी हा कर है। चलि सों“दुई फाग =कलम का पेट चीरकर ज- दो फाल का जाती हैं तब वह चलती है, जब प्रारंभ में दो विभाग (६) हुए तब सृष्टि का क्रम आारों चला। , बहकाकर इसी प्रकार इबलीस = शैतानजो लोगों को ईश्वर के विरुद्ध किया करता है ।