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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४४६

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अखरावट

आपु अलख पहिले हुत जहाँ। नाँव न ठावँ न मूरति तहाँ॥
पूर पुरान, पाप नहिं पुन्नू। गुपुत तें गुपुत, सुन्न तें सुन्नू॥
अलख अकेल, सबद नहिं भाँती। सूरुज, चाँद, दिवस नहिं राती॥
आखर, सुर, नहिं बोल, अकारा। अकथ कथा का कहौं बिचारा॥
किछु कहिए तौ किछु नहिं आाखौं। पै किछु मुह किछु हिय महँ राखौं॥
बिना उरेह अरंभ बखाना। हुता आपु महँ आपु समाना॥
आस न, बास न, मानुष अंडा। भए चौखँड जो ऐस पखंडा॥

दोहा

सरग न, धरति न खंभमय, बरम्ह न बिसुन महेस।
बजर बीज बीरौ अस, ओहि। न रंग, न भेस॥

सोरठा

तब भा पुनि अंकूर, सिरजा दीपक निरमला॥
रचा मुहम्मद नूर, जगत रहा उजियार होइ॥ २ ॥
ऐस जो ठाकुर किय एक दाऊँ। पहिले रचा मुहम्मद नाऊँ॥
तेहि कै प्रति बीज अस जामा। भए दुइ बिरिछ सेत औ सामा॥
होतै बिरवा भए दुइ पाता। पिता सरग औ धरती माता॥
सूरुज, चाँद दिवस औ राती। एकहि दूसर भएउ सँघाती॥
चलि सो लिखनी भइ दुइ फारा। बिरिछ एक उपनी दुइ डारा॥
भेंटन्हि जाइ पुन्नि औ पापू। दुख औ सुख, आनँद संतापू॥
औ तब भए नरक बैकूंठू। भल औ मंद, साँच औ झूठू॥

दोहा

नूर मुहम्मद देखि तब भा हुलास मन सोइ।
पुनि इबलीस सँचारेउ, डरत रहै सब कोई॥


(२) पूर पुरान = पूर्ण पुराण पूरुष ही था। गुपुत तें...सुन्नू = गुप्त से भी गुप्त और शून्य से भी शून्य। सुर = स्वर। किछु कहिए...आखी = यदि मैं कुछ कहता हूँ, तो भी मानो उसके संबंध में कुछ नहीं कहता हूँ, क्योकि वह वर्णन के बाहर है। उरेह = रूपरेखा या चित्र। अंडा = पिंड, शरीर। चौखँड = चारों ओर। पखंडा = प्रपंच बिस्तार। खंभमय = खंभों सहित (पहाड़ पृथ्वी के खंभे हैं) । बरम्ह = ब्रह्मा। बजर बीज बीरौ अस = इस संसार रूपी वृक्ष का वज्र के समान स्थिर बीज मात्र था। (३) ऐसा जो ठाकुर...दाऊँ = उस प्रभु ने एक बार ऐसा किया। तेहि के...जामा = मुसलमानों के अनुसार मुहम्मद साहब की खातिर से ही दुनियाँ पैदा की गई। पिता सग...धरती माता = चित् पझ और अचित् (जड़) पक्ष। अँगरेज कवि मेरेडिथ ने स्वर्ग चौर पृथ्वी के विवाह को ऐसी ही कल्पना की है। चलि सों...दुई फारा = कलम का पेट चीरकर जब दो फालें की जाती हैं तब वह चलती है, इसी प्रकार जब आरंभ में दो विभाग (द्वंद्व) हुए तब सृष्टि का क्रम आगे चला। इबलीस = शैतान, जो बहकाकर लोगों को ईश्वर के विरुद्ध किया करता है।