पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४४७

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अखरावट २६५ हता जो एकदि सग, हां तुम्ह काहे बीरा ? ग्र व जिउ उठे तरंग, मुहमद कहा न जाइ कि ॥ जौ उतपति उपराजें चहा। ग्रापनि प्रभुता आयु सीं कहा ॥ रहा जो एक जल गुपुत समुंदा। बरसा सहस अठारह फंदा ॥ सोई ग्रंस घटे घट मेला। नौ सोड़ ब रन रन हो ड खेला ॥ ए ग्राg ऑो कहा गोसाईसिर नावह गरिड दुनियाई ग्राने पुल भांति बह फूले । बास बेधि कौतुक सब भूले जिथा जंतु सब प्रस्तुति भा सवे चीन्हा ॥ कीन्हा: संतोष मिलि तुम करता बड़ सिरजनहारा। हरता धरता सब संसारा है। भरा भंडार गुपुत तहूँजहाँ टर्बाह नहि धूप पुनि अनबन परक।र सीं, खेला परगट रूप । पर प्रम के झलपिट धनि मुख फ़ । सर्दू म: जो सिर सेंती खेल, मुहमद खेल सो प्रेम रस ॥ ४। एक चाक सव पिंडा चढ़ । भाँति भाँति के भर गढ़े । जवहीं जगत किए सब साजा। आादि चहेड ग्रादम उपराजा ॥ पहिलेइ रच चार अड़वायक। भए सब अट्वयन के नायक ॥ भई मायने चरिह के नाऊं । चारि वस्त मेरबह क ठा । तिन्ह के सवारा । पाँच भूत तेहि म्हें चारहु मंदिर पैसारा । आा श्रापु रुझी माया! एस न जाने दहें बेहि काया। ॥ महें नव द्वारा राख मझियारा। दसवें दि दे दिएड केवारा । उठ तरग ग्रा जो एकहि संग = जीव पहले ईश्वर से अलग नहीं था। वियोग के कारण मन में भाव उठते (४) उतपति = सृष्टि 'भता ने मट कहा = यह जो उत्पन्न की मानो अपनी प्रशंता अपने को ही प्रकट की (अयद यह ही विकास जगत् ईश्वर को शक्ति का है) । एफ जल अथ गुपुत सदा = आत्मतत्व था परमात्मा। बरसाद=नाना योनियों में प्रकट हुया। घटे घट = प्रत्येक घट या शहर में ! भए आयु । = श्राप ही जगत् के रूप में प्रकट हुा । धरता = धारण करनेवाला । ाँह नहि सुख दु:ख धूप या नहीं हैं अनबन 26 अनेक । भल = थपेडा, हिलोरा । साँ = सामने। सेती = से । (५) पिंडा = मिट्टी का लोदा जगे रतन यह बनाने लिये कुम्हार के पर रखा जाता है । भाँr=बरतन, के चाक शरीर यादम । = पैगंबरी या किताबी मतों के अनुसार नादि मनष्य। आढ़वायक : अढ़नेवाले , काम में लगानेवाले । चारि श्रढवायक = चार फरिश्ते। चारि वस्तु = चारो भूत । मंदिर = घर अर्थात् शरीर । पाँच भूत = वभूतात्मक इंदियाँ। पैसाराSघुसायाकाया । केहि = बिसकी यह कया है । झिथारा = बीच में । दसव = दसवाँद्वार, ब्रह्मरंध्र ।