पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४५१

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आखरावट २६९ घा घट जगत बराबर जाना। जेहि मह धरती सरग समाना ॥ माथ ऊँच मक्का बन टाऊँ। हिया मदीना नबी क नाऊँ ।। सरवनप्रावि, नाक, मुख चारी । चाहुि सेवक लेहु बिचारी भावे चारि फिलिस्ते जानते। भावें चार यार पहिचानहु ॥ भावे चारह मसिद कह। भाव चारि किताबें पढ़ऊ। भाव चारि*इ माम जजों आागे। भावै चारि खंभ ने लागे । भावे चारितु जुग मति पूरी। भावे ग्रागि, बाउ, जलभूरी ॥ दोहा नाभि कर्बल तर नारद, लिए पाँच कोटवार। नवो दुवार फिरे निति, दसई कर रजवार ॥ सोरठा पवनहु त मन चाँड़, मन त नासु उतावला । कतलुरै मेंड़ न , मुहमद बह बिस्तार सो 1१०। ना तस पाहर । नारद काय। चारा मेलि फाँद जग माया नाद, बेद श्री भूत संचारा। सब अरुझाई रहा संसारा ॥ ग्रा निपट निरमल होइ रहा। एकई बार जाइ नहि गहा । जस । चौदह खंड दुख तहवें पीरा ॥ तैस सरीरा। जहॉं है जौन देस मद सँवरे जहाँ । तौन देस सो जानहु तहँवा ॥ देखतु मन हिरदय बसि रहा। खन महें जाइ जहाँ कोई चहा। वन अत अंत मह डले । जब बोले तब घट मह बोलें । । (माथ = माथे को मक्का समझो और हृदय को १०) ऊच नाऊ मदीना जिसमें नत्री या पैगंबर का नाम सदा रहता है । फिरिस्ते = स्वर्ग के चार दृत-जिवरईल. मकाइलइसराफील, इजराईल । चारि यार = उमर, उसमान चार खलीफा । मरसिद = माशिद, पीर ' गुरु। चार किताबें ग्राद चार ग्रासमानी किताबेंतौरेौं, जबूर (दाउद के गीत), इंजीलकुरान् । धर्म के अधिष्ठाता ! भावे । इमाम : : जैसे, अली, हसन, हुसेन = चाहे नाभि क ल तर = वह स्थान जहाँ योगी कुंडलिनी मानते हैं । पाँच कोटवार = काम, क्रोध, नादि चौकीदार । = प्रचंडप्रवल। आासु = , चित्त, चड़ चेतन तत्व ॥ कतई मेंड: सो = चित असीम ग्रौर व्यापक (११) तस = ऐसा पाह = पहरेदार । फॉद है । = शब्द । वेद = । = फसा नाद ब्रह्म धमें पस्त। भत s तात्मक इंद्रियाँ । आाणु = ईश्वर। जहव दुखपीरा = जहाँ क्लेश है वह उनका अनुभव भी। सँव‘ = स्मरण करे । तौन देस.. तहँवा = वहाँ उसी स्थान में उस ईश्वर को समझो । खन महूँ जा चझा = में जहाँ सकता है । अंत = अंतस् मन एक क्षण चाहे पहुँच भोतर । सोवत अंतरांडोलै = स्वन की दशा में मन आाप अपने भीतर ही भोतर डोलता है (औौर संसार छानता हृा जान पड़ता है)। जब बोलें। बोले = स्व८न में जब वह बोलता है तब भीतर ही भीतर । "