सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२७२
अखरावट

२७२ खरावट फूले पवन, पानि सब गरई । अगिनि जात्रि तन माटी करई ॥ जस वै सरग के मारग माहाँ । तस ए धरति देखि चित चाहा ॥ दोहा जस तन तस यह धरती, जस मन तेंस अकास । परमहंस तेहि मानस, सि : महें बास हैi सोरट तन दरपन कहें साजु, दरसन देखा जी चहै । मन सौं लीजिय माँजि, मुहमद निरमल होइ दिना 1१४। झा झॉखर तन मनु मन भूलें। काँटन्ह माँह पुल जर्न फ्लै देखतें 5 परमहंस के परहीं । नयन जति सो दिखैरति नाहीं । जगमग जल म: दीखत जैसे । नाहि मिला, नहि बेहरा तैसे ॥ जस दरपन महें दरसन देखा। हिय निरमल तेहि महें जग देखा है। तेहि सेंग लागा पाँचों लिया। कामकोह, तिम्ना, मदमाया ॥ चख महें नियर, निहारत दूरी। सब ट माँह रहा भरिपूरी । पवन न उड़ेन मी पानी। प्रगनि जएं जस निरमल बानी॥ ध म जस घीउ है, समद माहें जस मोति । नैन मींजि जT देखहु, चमकि उठे तस जोति ॥ सरटा। एकहि दृढ़ होड़, दु, सों राज न चलि सके । दोच में आापुहि खोखे, मुहमद ए होइ रद । १५ ना नगरी काया बिधि कीन्हा। लेड़ खोजा पावा, ने चीन्हा ॥ तन भोग औौ रोगू । संसार । मद जग भि पर सेंज गू रामपुरी औी कीन्ह कुकरमा। मौन लाइ सीधे प्रस्तर माँ ॥ फले = वायु से शव फूलता है जस तनकाम पवन । = शरीर वेनेसा ही स्थूल भौतिक तत्व है गौर जैसे पृथ्वी, मन या चित् वेसा ही सूक्ष्म तत्व है जैसे स्वर्ग या नाका १५= भाड़ झंखाड़ । बानी = । । () झाँखर वर्णकति दूध माँजोति = अत् िव “वह ज्योति भी इसी जगत् के भीतर भीतर भासित हो रहो बीडु में श्राहि है ! खोइ = एक ही ब्रह्म के चित् ऑौर अचित् दो पक्ष हुए, दोनों के बीच तेरी अलग सत्ता कहाँ से आाई ? अपनी अलग सत्ता या के श्रम अहंभाव को मिटाकर ब्रह्म में मिलकर एक हो जा। (१६) नगरा काया -“कीहा = ईश्वर ने इस शरीर की रचना एक नगर के रूप में की है । । संसार सँजोग = संसार की रचनारामपुरी = स्वर्ग ; वह का स्थान । कुकरमा : । नरक= तह । स्तर । साध अस्तर माँ = (जो उस रामपुरी या ब्रह्मद्वार तक पहुंचना चाहता हो वह) चुपचाप भीतरी तह में हैठे ।