आखरावट २७३ I सुठि अगम पंय बड़े बाँका। तस मारग जस सुई क नाका ॥ चाँक चढ़ाव, सात खंड ऊँचा। चारि बसेरे जा पहुंचा ॥ जस सुमेरु पर अमृत मूरी । देखत नियर, चढत बड़ि दूसरी ॥ घि हिचल जो तहें जई। अमृतमूरि पाइ सो खाई ॥ दोहा । एहि बाट पर नारद, वैट कटक के साज । जो मोहि पेलि पईने, करै दुव जग राज ॥ ‘हीं' कहते भए नोट, पिये खंड मोस भए बहु फाटक कोट, मुहमद अब कैसे मिलहि 1१६। ‘टा टक गाँकह सात ख़डा। खंड खंड लखह बरम्हड मह । पहिल खंड जोरों सनीचर नाऊँ। लखि न टक, पौरी रोकें। द्र बड़ हस्पति तहँवा। काम द्वार भोग घर जहाँ । ॥ तौसर ज । श्रोहि
- जो मंगल जान नाभि कर्बल महें अस्थानह
चौथ खंड जो शादित अहई। बाई दि िअस्तन महें रहई। ॥ पाचव वंड उपराहीं। कंठ माहें औौ जीभ तराहीं । ॥ सुत्र द्ध कर बासा। दुड़ भौंहन्ह के बीच निवासा दोहा सातवू सोर कपार , कहा तो दसवें दुधार। जा वह पर्धारि ऊा सो बड़े सिद्ध अपार ॥ सरिटा। जो न होत अवतार, कहाँ कुटुम परिवार सब । ठ सब संसार, महमद चित्त न लाइए १७ । बाँका = टेढ़ाक = नई का , विकट । सुई नाका छेद । चारि बसेरे = योग के ध्यान, प्रत्याहार सूफियों के अनुसार शरीअत , धारणऔौर समाधि अथवा तरीकतहकोकत और मारफत--साधक की ये चार अवस्थाएँ । जस सुमेरु पर अंत मूरो = जैसे सुमेरु पर संजीवनी है उसी प्रकार ऊपर कपाल में ब्रह्म । स्वरूपा मज्योति । है । एहि बाट पर = सपना का मार्ग जो नाभिचक्र से ऊपर बहार (। दशम द्वार) की ग्रोर गया है । ‘हीं' कहते भए ओोट = पिये प्रिय या अहंकार आते ही ब्रह्म श्रौर जीव के बीच व्यवधान पड़ गया । = ईश्वर ने । खंड = भेद । (१७) पहिल खंडेड जो सनोचर नाऊँ = जिस प्रकार ऊपर नीचे ग्रहों है उसी प्रकार शरीर में क्रमशः सात खंड हैं जिसमें) को स्थिति सबसे पहला या नीचे सनोचर है जो शरीर में पौली या लात समझना चाहिए। । कवि ने जो एक के ऊपर दूसरे ग्रह को स्थिति लिखी है वह ज्योतिष के ग्रंथों के चत्र। अनुसार तो है पर इससे हठयोग के मूलाधार आौर की व्यवस्था ठीक ठीक नहीं बैठती।