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पृष्ठ:जायसी ग्रंथावली.djvu/४६८

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२८६
अखरावट

२८६ आखरावट तिल तिल दिस्टि जोति सह ठानै । सांस चढ़ाइ के ऊपर जाने दोहा। तो निरमल मख देखे जोग होइ तेहि ऊप । होइ डिटियार सो देखें आंधन के धकूप ॥ सोरटा जेकर पास अनफाँस, कह झिय फिकिर 'भारि है । कहत रहै हर साँस, मुहमद निरमल होइ तब ॥ ३१ ।: खा खेलन ने खेल पसारा। कठिन खखेल खेलनहारा। प्राहि प्राहि चाह देखावा । श्रादम रूप भेस धरि नावा ॥ अलिफ एक अल्ला बड़ सोई। दाल दीन दुनिया सब कोई ॥ मख दुड ॥ मीम मुहम्मद प्रीति पियारा। तिनि नाखर यह रथ बिचारा ॥ विधि अपने हाथ उरेहा । जग सानि सँवारा देहा के दरपन अस रचा बिसेखा। ग्रापन दरस या महें देखा जो यह खोज श्राप महें कोन्हा। तेइ प्रापृहि खोजा, सब चीन्हा ॥ भागि किया दुआइ मारग, पाप पुन्नि दुइ ठाँव । दहिने सौ मुठेि दाहिनेबाएँ सौ सुछि बातें ॥ सोर भा अपूर सब ठावें, गुड़िला मोम सँवारि कै; । नाएँ, मुहमद सब शादम कहै ॥ ४० ॥ श्र उन्ह नाँव सीखि जौ पावा । अलख नाव लेड सिद्ध कहावा ॥ अनहद ते भा आदम दूजा। श्राप नगर करवायें पूजा ॥ घट घट महें होइ निति सब ठाऊँ। लाग पुकारे आापन ना. ।। अनहद सुन्न रहै सब लागे । कबहूं न बिसगे सोए जागे । लिखि पुरान महें कहा बिसेखी। मोहैि नहि देखहमैं तुम्ह देखी। तू तस सोइ न माह बिसारसि। न सेवा जीते, नहि हासि ॥ ग्रस निरमल जस दरपन मागे । निसि दिन तोर दिस्टि मोह लागे ॥ उप = प्रोप, प्रकाश । पास घनफीस = बंधन और मोक्ष । फिकि र = फि, सामीप्य प्राप्त करने के लिये चितन । (४०) शाहिदेखावा = अपना ‘‘रूप अपने । अलिफ को ही दिखाना चाहा - अरबी का आाकारसूचक वर्षों से दाल = ‘द' सूचक वर्ण। मीम = ‘म’ सूचक वर्ण । तिनि = ‘मादम' शब्द के तीन अक्षर। भागि = विभाग करके , बाँटकर। गुड़िला = पुतला, मूति । मोम = मोम का । (४१) अनहद = नादब्रहा।' मोह नहीं देखहुदेखी । घुम मुझे नहीं देखते हो, मैं तुम्हें देखता हूं । सेवा = सेवा से।